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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक - ५ [ २९.] इसी प्रकार (नील, कपोत, पीत और पद्मलेश्या) शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए। ३०. सम्मद्दिट्ठि-मिच्छादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठी, चक्खुदंसणे अचक्खुदंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, अहारसण्णा. जाव, परिग्गहसण्णा, एयाणि अवण्णाणि अरसाणि अंगधाणि अफासाणि । १८१ [३०] सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि, तथा चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन, आभिनिबोधिकज्ञान (से लेकर श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मति - अज्ञान, श्रुतअज्ञान और) विभंगज्ञान ( तक एवं) आहारसंज्ञा ( भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा) यावत् परिग्रहसंज्ञा, ये सब वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित हैं । ३१. ओरालियसरीरे जाव तेयगसरीरे, एयाणि अट्ठफासाणि । कम्मगसरीरे चउफासे । मणजोगे वइजोगे य चउफासे । कायजोगे अट्ठफासे । [३१] औदारिक शरीर (वैक्रियशरीर, आहारकशरीर) यावत् तैजसशरीर, ये अष्टस्पर्श वाले हैं। कार्मणशरीर, मनोयोग और वचनयोग, ये चार स्पर्श वाले हैं। काययोग अष्टस्पर्श वाला है। ३२. सागारोवयोगे य अणागारोवयोगे य अवण्णा० । [३२] साकार-उपयोग और अनाकारोपयोग, ये दोनों वर्णादि से रहित हैं। ३३. सव्वदव्वा णं भंते ! कतिवण्णा० पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगतिया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता । अत्थेगतिया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव चउफासा पन्नत्ता । अत्थेगतिया सव्वदव्वा एगवण्णा एगगंधा एगरसा दुफासा पन्नत्ता । अत्थेगतिया सव्वदव्वा अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता । [ ३३. प्र. ] भगवन् ! सभी द्रव्य कितने वर्णादि वाले हैं ? [ ३३ उ. ] गौतम ! सर्वद्रव्यों में से कितने ही पांच वर्ण यावत् (पांच रस, दो गन्ध और) आठ स्पर्श वाले हैं। सर्वद्रव्यों में से कितने ही पांच वर्ण यावत् (पांच रस, दो गन्ध और) चार स्पर्श वाले हैं। सर्वद्रव्यों में से कुछ (द्रव्य) एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाले हैं। सर्वद्रव्यों में से कई वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से रहित हैं । ३४. एवं सव्वपएसा वि, सव्वपज्जवा वि । [३४] इसी प्रकार (सर्वद्रव्य के समान) सभी प्रदेश और समस्त पर्यायों के विषय में भी उपर्युक्त विकल्पों का कथन करना चाहिए । ३५. तीयद्धा अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता । एवं अणागयद्धा वि । एवं सव्वद्धा वि । [३५] अतीतकाल (अद्धा) वर्ण रहित यावत् स्पर्शरहित कहा गया है। इसी प्रकार अनागत - काल भी और समस्त काल (अद्धा) भी वर्णादिरहित हैं । विवेचन—निष्कर्ष— धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, भावलेश्याएँ तथा सम्यग्दृष्टि
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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