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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
होते हैं।
___ आण-प्राण-पुद्गलपरिवर्त्त — श्वासोच्छ्वास एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक सभी संसारी जीवों के होता है, इसलिए आनप्राण-पुद्गलपरिवर्त सभी जीवों में एक से लेकर अनन्त तक होता है।२ । बहुत्व की अपेक्षा से नैरयिकादि जीवों के नैरयिकत्वादिरूप में अतीत-अनागत सप्तविध पुद्गल-परिवर्त्त निरूपण
४०. [१] नेरइयाणं भंते ! नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? नत्थेक्को वि।
[४०-१ प्र.] भगवन् ! अनेक नैरयिक जीवों के नैरयिक भव में अतीतकालिक औदारिकपुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए हैं ?
[४०-१ उ.] गौतम ! एक भी नहीं हुआ। [२] केवइया पुरेक्खडा ? नत्थेक्को वि।
[४०-२ प्र.] भगवन् ! (अनेक नैरयिक जीवों के नैरयिक भव में) भविष्य में कितने (औदारिकपुद्गलपरिवर्त) होंगे ?
[४०-२ उ.] गौतम ! भविष्य में एक भी नहीं होगा। ४१. एवं जाव थणियकुमारत्ते।
[४१] इसी प्रकार (अनेक नैरयिक जीवों के असुरकुमार भव से लेकर) यावत् स्तनितकुमार भव तक (कहना चाहिए।)
४२. [१] पुढविकाइयत्ते पुच्छा ? अणंता।
[४२-१ प्र.] भगवन् ! अनेक नैरयिक जीवों के पृथ्वीकायिकपन में (अतीतकालिक औदारिकपुद्गलपरिवर्त) कितने हुए हैं।
[४२-१ उ.] गौतम ! अनन्त हुए हैं। [२] केवतिया पुरेक्खडा ?
अणंता। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६९ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ५८५