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बारहवाँ शतक : उद्देशक-४
१५९ कठिन शब्दार्थ—साहणणा—संहनन अर्थात् संघात, संयोग। भेद-वियोग या विभाग। समथुगंतव्वा भवंतीतिमक्खया-सम्यक् प्रकार से जानने योग्य हैं, या जानने चाहिए, इस हेतु से भगवान् द्वारा कहे गये हैं। आण-पाणु-आन-प्राण श्वासोच्छ्वास।' एकत्व-बहुत्व दृष्टि से चौवीस दण्डकों में औदारिकादि सप्त-पुद्गलपरिवर्त-प्ररूपणा
१८. [१] एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? अणंता। [१८-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक (प्रत्येक) जीव के अतीत औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए हैं ? [१८-1 उ.] गौतम ! अनन्त हुए हैं। [२] केवइया पुरेक्खड़ा।
कस्सति अत्थि, कस्सति णत्थि। जस्सऽत्थि जहण्णेणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। ___[१८-२ प्र.] (भगवन् ! प्रत्येक जीव के) भविष्यत्कालीन पुद्गलपरिवत कितने होंगे?
[१८-२ उ.] गौतम ! (भविष्यत्काल में) किसी के (पुद्गलपरिवर्त्त) होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्य एक, दो, तीन होंगे तथा उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे।
१९. एवं सत्त दंडगा जाव आणपाणु त्ति।
[१९] इसी प्रकार (वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त से लेकर) यावत्-आन-प्राण, (श्वासोच्छ्वास-पुद्गलपरिवर्त तक) सात आलापक (दण्डक) कहने चाहिए।
२०.[१] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? अणंता। [२०-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक के अतीत औदारिक-पुद्गलपरिवर्त कितने हैं ? [२०-१ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं। [२] केवतिया पुरेक्खडा?
कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि। जस्सऽत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेजा वा अणंता वा।
[२०-२ प्र.] भंगवन् ! (प्रत्येक नैरयिक के) भविष्यत्कालीन (पुद्गलपरिवर्त) कितने होंगे?
१. (क) भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ५६८
(ख) 'आणपाणु' शब्द के लिए 'पाइयसद्दमहण्णवो', पृ. ११०