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________________ १५८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र _[१५ उ.] गौतम ! वह सात प्रकार का कहा गया है। यथा—(१) औदारिक-पुद्गलपरिवर्त, (२) वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त, (३) तैजस-पुद्गलपरिवर्त (४) कार्मण-पुद्गलपरिवर्त, (५) मनः-पुद्गलपरिवर्त्त, (६) वचन-पुद्गलपरिवर्त्त और (७) आनप्राण-पद्गलपरिवर्त। __१६. नेरइयाणं भंते! कतिविधे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते ? गोयमा ! सत्तविधे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियपोग्गलपरियट्टे वेउव्वियपोग्गलपरियट्टे जाव आणपाणुपोग्गलपरियट्टे। [१६ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के पुद्गलपरिवर्त्त कितने प्रकार के कहे गये हैं ? [१६ उ.] गौतम ! (नैरयिक जीवों के भी) सात प्रकार के पुद्गलपरिवर्त्त कहे गये हैं, यथाऔदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त, वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त यावत् आनप्राण-पुद्गलपरिवर्त। १७. एवं जाव वेमाणियाणं। [१७] इसी प्रकार (असुरकुमार से लेकर) यावत् वैमानिक (दण्डक) तक कहना चाहिए। विवेचन—पुद्गलपरिवर्त्त : क्या, कैसे और कितने प्रकार के ?—पुद्गल द्रव्यों के साथ परमाणुओं का मिलन पुद्गलपरिवर्त्त है। ये पुद्गलपरिवर्त संघात (संयोग)और भेद (विभाग) के योग से अनन्तानन्त होते हैं । अनन्त को अनन्त से गुणा करने पर जितने होते हैं, वे अनन्तानन्त कहलाते हैं । एक ही परमाणु अनन्ताणुकान्त व्यणुकादि द्रव्यों के साथ संयुक्त होने पर अनन्त परिवत्र्तों को प्राप्त करता है। प्रत्येक परमाणु रूप द्रव्य में परिवर्त्त होता है और परमाणु अनन्त हैं । इस प्रकार प्रत्येक परमाणु में अनन्तपरिवर्त्त होते हैं। इसलिए परमाणु-पुद्गलपरिवर्त अनन्तानन्त हो जाते हैं। साथ ही, ये पुद्गलपरिवर्त्त कैसे होते हैं ? यह भी भलीभाँति जानना चाहिए। यहाँ मूलपाठ में बताया गया है कि पुद्गल द्रव्यों के साथ परमाणुओं के संघात (संहनन-संयोग) और भेद (वियोगविभाग) के अनुपात—योग से पुद्गलपरिवर्त्त होते हैं। सामान्यतया पुद्गलपरिवर्तों के ७ प्रकार हैं-औदारिक, वैक्रिय, तैजस, कार्मण, मन, वचन और आन-प्राण पुद्गल परावर्त । औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त-औदारिकशरीर में विद्यमान जीव के द्वारा लोकवर्ती औदारिकशरीरयोग्य द्रव्यों का औदारिकशरीर के रूप में समग्रतया ग्रहण किया जाता है, तब उसे औदारिकपुद्गलपरिवर्त्त कहते हैं। इसी प्रकार वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त्त आदि का अर्थ समझ लेना चाहिए। आशय यह है कि पूर्वोक्त पुद्गलपरिवर्त्त औदारिक आदि सात माध्यमों से होता है।' नैरयिक पुद्गलपरिवर्त्त-अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करते हुए नैरयिक जीवों के सात प्रकार के पुद्गलपरिवर्त्त कहे गए हैं। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६८ (ख) भगवती (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २०३६ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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