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बारहवाँ शतक : उद्देशक - ४
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चाहिए। जिस प्रकार असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध के भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार यहाँ ये सब अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के भंग कहने चाहिए । विशेष यह है कि एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहना चाहिए। यावत्- -अथवा एक ओर संख्यात संख्यातप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा एक ओर संख्यात असंख्यात - प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा संख्यात अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
जब उसके असंख्यात भाग किये जाते हैं तो एक ओर पृथक्-पृथक् असंख्यात परमाणु पुद्गल और एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा एक ओर असख्यांत द्विप्रदेशी स्कन्ध होते हैं, और एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है, यावत् — एक ओर असंख्यात संख्यातप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक अनन्तप्रदेशी . स्कन्ध होता है । अथवा एक ओर असंख्यात असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा असंख्यात अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होते हैं ।
अनन्त विभाग किये जाने पर पृथक्-पृथक् अनन्त - परमाणु पुद्गल होते हैं ।
विवेचन—– अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विभागीय विकल्प — अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विभाग के पहले तेरह विकल्प (भंग) कह कर फिर उत्तरोत्तर १२-१२ विकल्प बढ़ाते जाना चाहिए। यथा— द्विसंयोगी १३, त्रिकसंयोगी २५, चतुष्कसंयोगी ३७, पंचसंयोगी ४९, षट्संयोगी ६१, सप्तसंयोगी ७३, अष्टसंयोगी ८५, नवसंयोगी ९७, दशसंयोगी १०९, संख्यात - संयोगी १३, असंख्यात - संयोगी १३ और अनन्त संयोगी १, यों कुल मिला कर ५७६ भंग हुए।'
परमाणुपुद्गलों का पुद्गलपरिवर्त्त और उसके प्रकार
१४. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणंताणंता पोग्गलपरियट्टा समगंतव्वा भवतीति मक्खाया ?
हंता, गोयमा ! एतेसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा जाव मक्खाया।
[१४ प्र.] भगवन् ! इन परमाणु- पुद्गलों के संघात (संयोगी) और भेद ( वियोग ) के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्गलपरिवर्त जानने योग्य हैं, (क्या) इसीलिए (आपने) इनका कथन किया है ?
[१४ उ.] हाँ, गौतम ! संघात और भेद के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त- पुद्गल - परिवर्त्त जानने योग्य हैं, इसीलिए ये कहे गये हैं ।
१५. कतिविधे णं भंते ! पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते ?
गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं जहा — ओरालियपोग्गलपरियट्टे वेडव्वियपोग्गलपरियट्टे तेयापोग्गलपरियट्टे कम्मापोग्गलपरियट्टे मणपोग्गलपरियट्टे वइपोग्गलपरियट्टे आणपाणुपोग्गलपरिट्टे ।
[१५ प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्त्त कितने प्रकार का कहा गया है ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६६ - ५६७