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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२०-२ उ.] गौतम ! (भविष्यत्कालिक पुद्गल परिवर्त) किसी (नैरयिक) के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिस (नैरयिक) के होंगे, उसके जघन्य एक, दो (या) तीन होंगे और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे।
२१. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा० ? एवं चेव। [२१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के अतीतकालिक कितने औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त हुए हैं ? [२१ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्वोक्तवत्) जानना चाहिए।
२२. एवं जाव वेमाणियस्स। ___ [२२ ] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत् वैमानिक (के अतीत पुद्गलपरिवर्त) तक (पूर्ववत् कथन करना चाहिए।)
२३. [१] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवतिया वेउव्वियपुग्गलपरियट्टा अतीया ? अणंता। [२३-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नारक के भूतकालीन वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए हैं ? [२३-१ उ.] गौतम ! (वे भी) अनन्त हुए हैं। [२] एवं जहेव ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव वेउब्बियपोग्गलपरियट्टा वि भाणियव्वा।
[२३-२ प्र.] जिस प्रकार औदारिक-पुद्गलपरिवर्त के विषय में कहा, उसी प्रकार वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त्त के विषय में कहना चाहिए।
२४. एवं जाव वेमाणियस्स आणापाणुपोग्गलपरियट्टा। एए एगत्तिया सत्त दंडगा भवंति।
[२४] इसी प्रकार (प्रत्येक नैरयिक से लेकर) यावत् प्रत्येक वैमानिक के (अतीत-कालिक तैजसपुद्गलपरिवर्त्त से लेकर) आन-प्राण-श्वासोच्छ्वास पुद्गलपरिवर्त्त तक (की वक्तव्यता कहनी चाहिए।) इस प्रकार प्रत्येक नैरयिक से वैमानिक तक प्रत्येक जीव की अपेक्षा से ये सात दण्डक होते हैं।
२५ [१] नेरइयाणं भंते ! केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? अणंता। [२५-१ प्र.] भगवन् ! (समुच्चय) नैरयिकों के अतीतकालीन औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए हैं ? [२५-१ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हुए हैं। [२] केवतिया पुरेक्खडा? अणंता।