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________________ १३५ बारहवाँ शतक : उद्देशक-२ इसलिए इन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। ' इसी कारण से, हे जयंती !, ऐसा कहा जाता है कि कई जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कई जीवों का ग्रत रहना अच्छा है। १९.[१] बलियत्तं भंते ! साहू, दुब्बलियत्तं साहू ? जयंती ! अत्थेगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। [१९-१ प्र.] भगवन् ! जीवों की सबलता अच्छी है या दुर्बलता ? [१९-१ उ.] जयंती ! कई जीवों की सबलता अच्छी है और कई जीवों की दुर्बलता अच्छी है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'जाव साहू' ? जयंती ! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरंति एएसि णं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। एए णं जीवा० एवं जहा सुत्तस्स (सु. १८ [२]) तहा दुब्बलियस्स वत्तव्वया भाणियव्वा। बलियस्स जहा जागरस्स (सु० १८ [२]) तहा भाणियव्वं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं बलियत्तं साहू। से तेणठेणं जयंती ! एवं वुच्चइ तं चेव जाव साहू। [१८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि कई जीवों की सबलता अच्छी है और कई जीवों की दुर्बलता अच्छी है ? [१८-२ उ.] जयंती ! जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्म से ही आजीविका करते हैं, उन जीवों की दुर्बलता अच्छी है। क्योंकि ये जीव दुर्बल होने से किसी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व को दुःख आदि नहीं पहुँचा सकते, इत्यादि (१८-२ सू. में उक्त) सुप्त के समान दुर्बलता का भी कथन करना चाहिए। और 'जाग्रत' के समान सबलता का कथन करना चाहिए। यावत् धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं, इसलिए इन (धार्मिक) जीवों की सबलता अच्छी है। हे जयंती ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि कई जीवों की सबलता अच्छी है और कई जीवों की निर्बलता। २०. [१] दक्खत्तं भंते ! साहू, आलसियत्तं साहू ? जयंती ! अत्थेगतियाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू। [२०-१ प्र.] भगवन् ! जीवों का दक्षत्व (उद्यमीपन) अच्छा है, या आलसीपन ? [२०-१ उ.] जयंती ! कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है। [२] से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चति तं चेव जाव साहू ? जयंती ! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरंति, एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू। एए णं
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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