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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक-२ १३३ भवसिद्धिक-स्वरूप—जिनकी सिद्धि भावी (भविष्य) में होने वाली है, वे भवसिद्धिक हैं । अथवा जो भव्य हैं, मुक्ति के योग्य हैं, अर्थात्-जिनमें मुक्ति जाने की योग्यता है, वे भवसिद्धिक कहलाते हैं। समस्त भवसिद्धिक जीव एक न एक दिन अवश्य सिद्धि प्राप्त करेंगे, अन्यथा उनमें भवसिद्धिकता ही घटित नहीं हो सकती। इसीलिए यहाँ भगवान् ने बताया है कि भवसिद्धिक जीवों की भवसिद्धिकता स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। ऐसा नहीं होता कि वे पहले अभवसिद्धिक थे किन्तु बाद में पर्याय-परिवर्तन होने के कारण भवसिद्धिक हो गए। जैसे पुद्गल में मूर्तत्व धर्म स्वाभाविक है, वैसे ही भवसिद्धिक जीवों में भवसिद्धिकता स्वाभाविक है। लोक भवसिद्धिक जीवों से शून्य नहीं होगा-जयंती श्रमणोपासिका का प्रश्न है—'यदि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे तो संसार भवसिद्धिक जीवों से शून्य नहीं हो जाएगा? इसका एक समाधान यह है कि जितना भी भविष्यत्काल है, वह सब कभी न कभी वर्तमान हो जाएगा, तो क्या कभी ऐसा समय आ सकता है जब संसार भविष्यत्काल से शून्य हो जाएगा? ऐसा होना जैसे असम्भव है, वैसे ही समझना चाहिए कि लोक का भवसिद्धिक जीवों से शून्य होना असम्भव है। . इसी प्रश्न का एक पहलू यह भी है—जितने जीव सिद्ध होंगे, वे सभी भवसिद्धिक होंगे, अभवसिद्धिक एक भी सिद्ध नहीं होगा, ऐसा मानने पर भी वही प्रश्न उपस्थित रहता है कि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएंगे, तो क्या लोक भवसिद्धिकजीव-शून्य नहीं हो जाएगा ? भगवान् ने आकाशश्रेणी का दृष्टान्त देकर समाधान किया है-जैसे समग्र आकाश की श्रेणी अनादि-अनन्त है, उसमें से एक-एक परमाण जितना खण्ड प्रतिसमय निकाला जाए तो अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल व्यतीत हो जाने पर भी आकाशश्रेणी खाली नहीं होगी, इसी प्रकार भवसिद्धिक जीवों के मोक्ष चले जाते रहने पर भी यह लोक भवसिद्धिक जीवों से खाली नहीं होगा। एक अन्य समाधान—दो प्रकार के पाषाण हैं, एक में मूर्ति बनने की योग्यता है, दूसरे ऐसे पाषाण हैं, जिनमें मूर्ति बनने की योग्यता नहीं है। किन्तु जिन पाषाणों में मूर्ति बनने की योग्यता है, वे सभी पाषाण मूर्ति नहीं बन जाते। जिन पाषाणों को मूर्तिकार आदि का संयोग मिल जाता है, वे मूर्तिपन की सम्प्राप्ति कर लेते हैं, किन्तु जिन पाषाणों की मूर्तिपन की सम्प्राप्ति नहीं होती, उनमें मूर्तिपन की अयोग्यता नहीं होती, किन्तु तथाविध संयोग न मिलने से वे मूर्तिपन की सम्प्राप्ति नहीं कर पाते । यही बात भवसिद्धिक जीवों के विषय में भी समझनी चाहिए। १. (क) 'भवा-भाविनी सिद्धिर्येषां ते भवसिद्धिकाः।' -भगवती. अ. वृ. पत्र ५५८ __ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४ पृ. १९९४ १. (क) "सर्व एवानागतकालसमया वर्तमानतां लप्स्यन्ते, इत्यभ्युपगमात्, न चानागतकालसमयविरहितो लोको भविष्यति, इत्येवं न भवसिद्धिकशून्यता लोकस्य स्यात्।" -भगवती. अ. वृ. पत्र ५५९ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५५९-५६०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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