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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१५ उ.] जयंती ! वह स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। १६ सव्वे वि णं भंते ! भवसिद्धीया जीवा सिज्झस्संति ? हंता, जयंती ! सव्वे वि णं भवसिद्धीया जीवा सिज्झिस्संति। [१६ प्र.] भगवन् ! क्या सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे? [१६ उ.] हाँ, जयंती ! सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएंगे।
१७. [१] जइ णं भंते ! सव्वे भवसिद्धीया जीवा सिझिस्संति तम्हा णं भवसिद्धीयविरहिए लोए भविस्सइ ?
णो इणढे समठे।
[१७-१ प्र.] भगवन् ! यदि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे, तो क्या लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित हो जाएगा?
[१७-१ उ.] जयंती ! यह अर्थ शक्य नहीं है।
[२] से केणं खाइएणं अद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सव्वे विणं भवसिद्धीया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव णं भवसिद्धीयविरहिते लोए भविस्सति ?
जयंती ! से जहानामए सव्वागाससेढी सिया अणादीया अणवदग्गा परित्ता परिवुडा, सा णं परमाणुपोग्गलमेत्तेहिं खंडेहिं समए समए अवहीरमाणी अवहीरमाणी अणंताहिं ओसप्पिणिउस्सप्पिणीहिं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया, से तेणट्टेणं जयंती ! एवं वुच्चई सव्वे वि णं' जाव भविस्सति।
[१७-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएँगे, फिर भी लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा?
[१७-२ उ.] जयंती! जिस प्रकार कोई सर्वाकाश की श्रेणी हो, जो अनादि, अनन्त हो, (एकप्रदेशी होने से) परित्त (परिमित) और (अन्य श्रेणियों द्वारा) परिवृत्त हो, उसमें से प्रतिसमय एक-एक परमाणु-पुद्गल जितना खण्ड निकालते-निकालते अनन्त उत्सर्पिणी और असर्पिणी तक निकाला जाए तो भी वह श्रेणी खाली नहीं होती। इसी प्रकार, हे जयंती ! ऐसा कहा जाता है कि सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे, किन्तु लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा।
विवेचन—भवसिद्धिक जीव-विषयक तीन प्रश्न—प्रस्तुत तीन सूत्रों (१५ से १७ तक) में जयंती श्रमणोपासिका द्वारा पूछे गये तीन प्रश्न और भगवान् द्वारा प्रदत्त उनका उत्तर प्रतिपादित है।
५. अधिक पाठ-"णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव ण भवसिद्धिअविरहिए लोए भविस्सइ।" यह पंक्ति यहाँ
'जाव' शब्द से सूचित है।