SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवां शतक : उद्देशक-२ १३१ कठिन शब्दार्थ—उवट्ठाणसाला—आस्थानमण्डप, सभास्थान। पडिसुणेति—स्वीकार किया। णियग-परियाल—अपने सगे सम्बन्धी तथा राजपरिवार (की महिलाएँ)। 'लहुकरण-जुत-जोइय०फुर्तीले वेगवान् घोड़ों से जुता हुआ। कर्मगुरुत्व-लघुत्व सम्बन्धी जयंती-प्रश्न और भगवत्समाधान १४. तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वं० २ एवं वयासी—कहं णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति ? जयंती ! पाणातिवातेणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति। एवं जहा पढमसते ( स० १ उ० ९ सु० १-३) जाव वीतीवयंति। [१४ प्र.] तदनन्तर वह जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान् महावीर से धर्मोपदेश श्रवण कर एवं अवधारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। फिर भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार पूछाभगवन् ! जीव किस कारण से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? • [१४ उ.] जयंती ! जीव प्राणतिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापस्थानों के सेवन से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं, (उ. ९, सू. १-३ में कहे) अनुसार, यावत् संसारसमुद्र से पार हो जाते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए)। . विवेचन—जीव को गुरुत्व और लघुत्व प्राप्त होने के कारण जयंती श्रमणोपासिका ने साक्षात् भगवान् से यह प्रश्न किया कि जीव किस कारण से गुरुत्व या लघुत्व को प्राप्त होते हैं ? भगवान् ने अर्थगम्भीर सीमित शब्दों में उत्तर दिया-अठारह पापस्थानों के सेवन और उनसे निवृत्त होने से जीव क्रमशः गुरुत्व और लघुत्व को प्राप्त होते हैं। गुरुत्व और लघुत्व यहाँ कर्म की अपेक्षा से समझना चाहिए। भवसिद्धिक जीवों के विषय में परिचर्चा . १५. भवसिद्धियत्तणं भत्ते ! जीवाणं किं सभावओ, परिणामओ ? जयंती ! सभावओ, नो परिणामओ। [१५ प्र.] भगवन् ! जीवों का भवसिद्धिकत्व स्वाभाविक है या पारिणामिक है ? १. (क) भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. १९८८-१९८९ (ख) पाइअसद्दमहण्णवो पृ. १७५, ५६२ (ग) भगवती. तृतीय खण्ड (गुजरात विद्यापीठ) पृ. २५८ २. यहाँ 'जाव' शब्द—'(एवं) आकुलीकरेंति, एवं परित्तीकरेंति, एवं दीहीकरेंति, एवं हस्सीकरेंति एवं अणुपरियटंति .....॥' इत्यादि पाठ का सूचक है। -भग. श. १, उ.९ सू. १,३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy