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________________ १२८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६] उस समय उदयन राजा को जब यह (भगवान् के कौशाम्बी में पदार्पण का) पता लगा तो वह हर्षित और सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा—'देवानुप्रियो ! कौशाम्बी नगरी को भीतर और बाहर से शीघ्र ही साफ करवाओ; इत्यादि सब वर्णन (औपपातिक सूत्र सू. २९३२, पत्र ६१-७५ में वर्णित) कोणिक राजा के समान; यावत् पर्युपासना करने लगा; (यहाँ तक जानना चाहिए।) ७. तए णं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा जेणेव मियावती देवी तेणेव उवागच्छति, उवा० २ मियावतिं देविं एवं वयासी—एवं जहा नवमसए उसभदत्तो ( स० ९ उ० ३३ सु० ५) जाव' भविस्सति। __ [७] तदनन्तर वह जयंती श्रमणोपासिका भी इस (भगवान् के आगमन के) समाचार को सुन कर हर्षित एवं संतुष्ट हुई और मृगावती के पास आकर इस प्रकार बोली-(इत्यादि आगे का सब कथन,) नौवें शतक (उ. ३३ सू. ५) में (उक्त) ऋषभदत्त ब्राह्मण के प्रकरण के समान, यावत्-(हमारे लिए इहभव, परभव और दोनों भवों के लिए कल्याणप्रद और श्रेयस्कर) होगा; यहाँ तक जानना चाहिए। ८. तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा ( स० ९ उ० ३३ सु० ६) जाव पडिसुणेति। [८] तत्पश्चात् (उस मृगावती देवी ने भी जयंती श्रमणोपासिका के वचन उसी प्रकार स्वीकार किये, जिस प्रकार (शतक ९, उ. ३३, सू. ६ में उक्त वृत्तान्त के अनुसार) देवानन्दा (ब्राह्मणी) ने (ऋषभदत्त के वचन) यावत् स्वीकार किये थे। ९. तए णं सा मियावती देवी कोडंबियपुरिसे सद्दावेति, को०स० २ एवं वयासी—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तजोइय०२ जाव ( स० ९ उ० ३३ सु० ७) धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव उवट्ठवेंति जाव पच्चप्पिणंति। [९] तत्पश्चात् उस मृगावती देवी ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा १. जाव शब्द से यहाँ-(एवं) खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे ..... अहापडिरूवं जाव विहरइ । तं महाफलं खलु देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसणंपडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए, एगस्स वि आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो जाव पज्जुवासामो, एवं णं अहभवे य, परभवे य हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए (भविस्सइ)—तक का पाठ समझना। -श. ९ उ. ३३ सू. ५ २. 'जाव' शब्द से यहाँ—'हट्ठ जाव हियय करयल जाव कटु एयमटुं' पाठ सूचित है। -श. ९ उ. ३३ सू. ७ ३. 'जाव' शब्द से यहाँ—..... समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगेहिं ..." पवरलक्खणोववेयं' इत्यादि पाठ सूचित है। -श. ९ उ. ३३ सू. ७
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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