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बारहवाँ शतक : उद्देशक-१
विवेचन—प्रस्तुत चार सूत्रों (१ से ४ तक) में जयंती श्रमणोपासिका से सम्बन्धित क्षेत्र एवं व्यक्तियों का परिचय दिया गया है।
जैन ऐतिहासिक तथ्य—इस मूलपाठ से भगवान् महावीर के युग की नगरी एवं उस नगरी के तत्कालीन, सहस्रानीक राजा के पौत्र तथा शतानीक राजा एवं मृगावती रानी के पुत्र उदयन नृप की बुआ एवं मृगावती रानी की ननद जयंती श्रमणोपासिका का परिचय ऐतिहासिक तथ्य पर प्रकाश डालता है।
'जयंती' की प्रसिद्धि–जयंती श्रमणोपासिका भगवान् महावीर के साधुओं को स्थान (मकान) देने में प्रसिद्ध थी। इसलिए जो साधु पहली बार कौशाम्बी में आते थे, वे उसी से वसति (ठहरने के लिए स्थान) की याचना करते थे और वह अत्यन्त भक्तिभाव से उन्हें ठहरने के लिए स्थान देती थी। इस तारण वह 'पूर्वशय्यातरा' (पूर्वसेज्जायरी) के नाम से प्रसिद्ध थी।
.. कौशाम्बी—यह उस युग में वत्सदेश की राजधानी एवं मुख्य नगरी थी। इसकी आधुनिक पहचान इलाहाबाद से दक्षिण-पश्चिम में स्थित 'कोसम' गाँव से की है।
कठिन शब्दार्थ-चेडगस्स—वैशालीराज चेटक का। नत्तुए–नप्ता-नाती, दौहित्र। भाउज्जाभौजाई, भाभी। अत्तए-आत्मज, पुत्र। भत्तिज्जए—भतीजा, भाई का पुत्र । धूया-पुत्री। पिउच्छा—पिता की बहन-बुआ, फूफी। सुण्हा-पुत्रवधू । णणंदा-ननद ।
वेसालीसावगाणं अरहंताणं-भावार्थ-वैशालिक—विशाला (त्रिशला) का अपत्य—पुत्र, अर्थात् भगवान् महावीर। उनके श्रावक अर्थात् भगवद्वचन को जो सुनते और सुनाते हैं— श्रवण रसिक हैं, उन आर्हत—अर्थात् अर्हदेवों—साधुओं की। जयंती श्रमणोपासिका : उदयन नृप-मृगावती देवी सहित सपरिवार भगवान् की सेवा में
५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति।
[५] उस काल (और) उस समय में (भगवान् महावीर) स्वामी (कौशाम्बी) पधारे, (उनका समवसरण लगा) यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी।
६. तए णं उदयणे राया इमीसे कहाए लद्धटे समाणे हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति, को० स० २ एवं वयासी—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कोसंबिं नगरिं सब्भिंतरबाहिरियं एवं जहा कूणिओं तहेव सव्वं जाव पज्जुवासइ। १. भगवतीसूत्र, अभय. वृत्ति. पत्र ५५८ २. उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. ३७९-३८० ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५५८ ४. वही, पत्र ५५८ ५. देखिये कूणिकनृप का भगवान् की सेवा में पहुंचने का वर्णन-औपपातिक सूत्र २९-३२, पत्र ६१-७५ (आगमोदय.)