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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक - २ 'देवानुप्रियो ! जिसमें वेगवान् घोड़े जुते हों, ऐसा यावत् श्रेष्ठ धार्मिक रथ जोत कर शीघ्र ही उपस्थित करो । कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् रथ लाकर उपस्थित किया और यावत् उनकी आज्ञा वापिस सौंपी। १२९ १०. तए णं सामियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं पहाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा बहूहिं खुज्जाहिं जाव (स०९ उ० ३३ सु० १० ) अंतेउराओ निग्गच्छति, अं० नि० २ जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ जाव' (स०९ उ० ३३ सु० १० ) रूढा । [१०] इसके बाद उस मृगावती देवी और जयंती श्रमणोपासिका ने स्नानादि किया यावत् शरीर को अलंकृत किया । फिर कुब्जा (आदि) दासियों के साथ वे दोनों अन्त: पुर से निकलीं । (यह वर्णन भी यावत् अन्तःपुर से निकलीं, यहाँ तक श. ९ उ. ३३ सू. १० के अनुसार जानना ।) फिर वे दोनों बाहरी उपस्थानशाला में आईं और जहाँ धार्मिक श्रेष्ठ यान था, उसके पास आकर (श. ९ उ. ३३ सू. १० के अनुसार) यावत् रथारूढ हुईं। यहाँ तक कहना। ११. तणं सामियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं रूढा समाणी णियगपरियाल० जहा उसभदत्तो (स० ९ उ० ३३ सु० ११ ) जाव धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहति । [११] तब जयंती श्रमणोपासिका के साथ श्रेष्ठ धार्मिक यान पर आरूढ मृगावती देवी अपने परिवारसहित, (इत्यादि सब वर्णन श. ९ उ. ३३ सू. ११ में उक्त ऋषभदत्त के समान) यावत् धार्मिक श्रेष्ठ यान से नीचे उतरी, (यहाँ तक कहना चाहिए ।) १२. तए णं सामियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं बहूहिं खुज्जाहिं जहा देवाणंदा (स० ९ उ० ३३ सु० १२) जाव वंदति नम॑सति, वं० २ उदयणं रायं पुरओ कट्टु ठिया चेव जाव (स० ९ उ० ३३ सु० १२) पज्जुवासइ । १. यहाँ 'जाव' शब्द — चिलाइयाहिं णाणादेस - विदेसपरिंपिडंयाहिं सदेस - णेवत्थ- गहियवेसाहिं इंगिय - चिंतिय पत्थियवियाणियाहिं कुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल- वरिसधर-थेर-कंचुइज्ज- महत्तरगवंद-परिक्खित्ता. इत्यादि पाठ का सूचक है। - श. ९ उ. ३३ सू. १० २. यहाँ 'जाव' शब्द " उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं पाठ का सूचक है। ३. यहाँ 'जाव' शब्द " संपरिवुडे मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णि. जेणेव तित्थगराइसए पासइ पा." इत्यादि पाठ का सूचक है। .......... " ' - श. ९ उ. ३३ सू. १० चेइए ते. उवा. २, छत्ताइए ४. यहाँ ' जाव' शब्द " जाव महत्तरगवंदपरिक्खित्ता स. भ. महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा...... जेणेव समणे भ. महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उ. समणं भ. महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करित्ता" इत्यादि / पाठ का सूचक है। - श. ९ उ. ३३ सू. १२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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