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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११
९५ प्रव्रजित होने की अनुमति मांगी। विशेष यह है कि (हे माता-पिता!) धर्मघोष अनगार से मैं मुण्डित होकर आगारवास (गृहवास) से अनगार धर्म में प्रव्रजित होना चाहता हूँ। (श. ९, उ. ३३, सू. ३५-४५ में लिखित) जमालि कुमार के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता में उत्तर-प्रत्युत्तर हुए। विशेष यह है कि मातापिता ने महाबल कुमार से कहा—हे पुत्र ! यह विपुल धर्म और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुई कलाकुशल आठ कुलबालाएं छोड़कर तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? इत्यादि शेष वर्णन पूर्ववत् है यावत् माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से इस प्रकार कहा- "हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए भी तुम्हारी राज्यश्री (राजा के रूप में • तुम्हें) देखना चाहते हैं।"
५६. तए णं महब्बले कुमारे अम्मा-पिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। [५६] माता-पिता की बात को सुनकर महाबल कुमार चुप रहे।
५७. तए णं से बले राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, एवं जहा सिवभद्दस्स ( स० ११ उ० ९ सु०७९) तहेव रायाभिसेओ भाणितव्वो जाव अभिसिंचंति, अभिसिंचित्ता करतलपरि० महब्बलं कुमार जएणं विजएणं वद्धावेंति, जएणं विजएणं वद्धावित्ता एवं वयासी–भण जाया ! किं देमो ? किं पयच्छामो ? सेसं जहा जमालिस्स तहेव, जाव ( स० ९ उ० ३३ सु० ४९-५२)
[५७] इसके पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और जिस प्रकार (श. ११, उ. ७, सू. ७९ में) शिवभद्र के राज्याभिषेक का वर्णन है, उसी प्रकार यहाँ भी महाबल कुमार के राज्याभिषेक का वर्णन समझ लेना चाहिए, यावत् महाबल का राज्याभिषेक किया, फिर हाथ जोड़ कर महाबल कुमार को जय-विजय शब्दों से बधाया; तथा इस प्रकार कहा—हे पुत्र ! कहो, हम तुम्हें क्यो देवें ? तुम्हारे लिए हम क्या करें ? इत्यादि वर्णन (श. ९, उ. ३३, सू. ४९-५२ में कथित) जमालि के समान जानना चाहिए; यावत् महाबल कुमार ने धर्मघोष अनगार से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
विवेचन—प्रस्तुत तीन सूत्रों (५५-५७) में निम्नलिखित तथ्यों का अतिदेशपूर्वक वर्णन किया गया है—(१) धर्मघोष अनगार का हस्तिनापुर में पदार्पण, (२) महाबल कुमार को धर्मोपदेश सुनकर वैराग्य होना, (३) माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगने पर परस्पर उत्तर-प्रत्युत्तर और अन्त में निरुत्तर-निरुपाय होकर अनिच्छा से अनुमति प्रदान करना, (४) एक दिन के राज्य ग्रहण करने की माता-पिता की इच्छा को स्वीकार करना, (५) दीक्षा महोत्सव एवं (६) धर्मघोष अनगार से विधिवत् भगवती दीक्षा ग्रहण करना। महाबल अनगार का अध्ययन, तत्पश्चरण समाधिमरण एवं स्वर्गलोकप्राप्ति
५८. तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जति, अहिजित्ता बहूहिं चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणति, बहु० पा० २ मासियाए संलेहणाए सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए। आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड़े चदिमसूरिय जहा अम्मडो जाव' बंभलोए
१. जाव पद-सूचित पाठ-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहुइं-जोयणाई बहूइं जोयणसयाइं बहूइं जोयणसहस्साई
बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुईओ जोयणकोडाकोडीओ उर्दू दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदे कप्पे वीईवइत्त त्ति।
-औप. सू. ४०, प. ९० (आगमो.)