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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र शिष्यानुशिष्य) धर्मघोष नामक अनगार थे। वे जातिसम्पन्न इत्यादि (राजप्रश्नीयसूत्रोक्त) केशी स्वामी के समान थे, यावत् पांच सौ अनगारों के परिवार के साथ अनुक्रम से एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे।
५४. तए णं हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिय जाव परिसा पज्जुवासति।
[५४] हस्तिनापुर नगर के शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत से लोग मुनि-आगमन की परस्पर चर्चा करने लगे यावत् जनता पर्युपासना करने लगी।
विवेचन—धर्मघोष अनगार का पदार्पण और हस्तिनापुरवासियों द्वारा उपासना—प्रस्तुत दो (५३-५४) सूत्रों में धर्मघोष अनगार का पाँच सौ शिष्यों सहित हस्तिनापुर में पदार्पण का तथा जनता द्वारा दर्शन-वन्दना एवं उपासना का वर्णन है।
पओप्पए-प्रपौत्रशिष्य-शिष्यानुशिष्य। महाबलकुमार द्वारा प्रव्रज्याग्रहण
५५. तए णं तस्स महबलस्स कुमारस्स तं महया जणसदं वा जणवूहं वा एवं जहा जमालि (स० ९ उ० ३३ सु० २४-२५) तहेव चिंता, तहेव कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, कंचुइज्जपुरिसे वि तहेव अक्खाति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव निग्गच्छति। एवं खलु देवाणुप्पिया ! विमलस्स अरहतो पउप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे सेसं तं चेव जाव सो वि तहेव रहवरेणं निग्गच्छति। धम्मकहा जहा केसिसामिस्स। सो वि तहेव (स० ९ उ० ३३ सु० ३३) अम्मापियरं आपुच्छति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वइत्तए तहेव वुत्तपडिवुत्तिया (स० ९ उ० ३३ सु० ३५-४५) नवरं इमाओ य ते जाया! विउलरायकुलबालियाओ कला० सेसं तं चेव जाव ताहे अकामाई चेव महब्बलकुमारं एवं वदासी-तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रजसिरि पासित्तए।
[५५] (धर्मघोषमुनि के दर्शनार्थ जाते हुए) बहुत से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सुनकर (श. ९ उ. ३३ सू. २४-२५ में उल्लिखित) जमालिकुमार के समान महाबल कुमार को भी विचार हुआ। उसने अपने कंचुकी पुरुष को बुलाकर (उसी प्रकार इसका) कारण पूछा। कंचुकी पुरुष ने भी (पूर्ववत्) हाथ जोड़कर महाबल कुमार से निवेदन किया—देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थंकर के प्रपौत्र शिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं। इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए यावत् महाबल कुमार भी जमालिकुमार की तरह (पूर्ववत्) उत्तम रथ पर बैठकर उन्हें वन्दना करने गया।धर्मघोष अनगार ने भी केशीस्वामी के समान धर्मोपदेश (धर्मकथा) दिया।सुनकर महाबल कुमार को भी (श. ९, उ. ३३, सू. ३५-४५ में कथित वर्णन के अनुसार) जमालि कुमार के समान वैराग्य उत्पन्न हुआ। घर आकर उसी प्रकार (जमालि कुमार की तरह) माता-पिता से अनगार धर्म में
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४८