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________________ ९० आठ कन्याओं के साथ विवाह ४९. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मा-पियरो अन्नया कयाइ सोभणंसि तिहि - करण-दिवसनक्खत- मुहुत्तंसि हायं कयबलिकम्मं कयकोउय-मंगल- पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणगण्हाय-गीय - वाइय-पसाहणट्टंगतिलग-कंकणअविहववहुउणीयं मंगल - सुजंपितेहि · य वरकोउय- मंगलोवयारकयसंतिकम्मं सरिसियाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलोवयारकतसंतिकम्माणं सरिसएहिं रायकुलेहिंतो आणितेल्लियाणं अहं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हाविंसु । व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४९] तत्पश्चात् किसी समय शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में महाबल कुमार ने स्नान किया, न्योछावर करने की क्रिया (बलिकर्म) की, कौतुक - मंगल प्रायश्चित किया । उसे समस्त अलंकारों से विभूषित किया गया। फिर सौभाग्यवती (सधवा स्त्रियों के द्वारा अभ्यंगन, स्नान, गीत, वादित, मण्डन (प्रसाधन), आठ अंगों पर तिलक (करना), लाल डोरे के रूप में कंकण (बांधना ) तथा दही, अक्षत आदि मंगल अथवा मंगलगीत — विशेष रूप में आशीर्वचनों से मांगलिक कार्य किये गए तथा उत्तम कौतुक एवं मंगलोपचार के रूप शान्तिकर्म किये गए। तत्पश्चात् महाबल कुमार के माता-पिता ने समान जोड़ी वाली, समान त्वचा वाली, समान उम्र की, समान रूप, लावण्य, यौवन एवं गुणों से युक्त विनीत एवं कौतुक तथा मंगलोपचार की हुई तथा शान्तिकर्म की हुई और समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में (महाबल कुमार का ) पाणिग्रहण करवाया । विवेचन — महाबल कुमार का पाणिग्रहण — उस युग के रीति-रिवाज एवं मंगलकार्य करने प्रथा के अनुसार शुभ मुहूर्त्त में माता-पिता ने समान जोड़ी की आठ राजकन्याओं के साथ विवाह कराया, जिसका वर्णन ४८वें सूत्र में है। कठिन शब्दों का भावार्थ ——– पमक्खणग—— प्रमक्षणक अभ्यंगन । पसाहण— मंडन । अट्ठगतिलगआठ अंगों पर तिलक - छापे। कंकण— लाल डोरे (मौली) को हाथ में बांधना । अविहव - वहु- सधवा वधुओं द्वारा । उवणीयं- नेगचार किये गये या रीति-रिवाज पूरे किये गए । मंगल-सुजंपितेहिं — मंगल अर्थात्— दही-अक्षत आदि अथवा मंगलगीतविशेष से सौभाग्यवती नारियों द्वारा उच्चारण किये गए आशीर्वचन। वरकोउय- मंगलोवयारकयसंतिकम्म — श्रेष्ठ कौतुक एवं मंगलोपचारों से शान्तिकर्म (पापोपशमनक्रिया) किया । २ बल राजा तथा महाबल कुमार की ओर से नववधुओं को प्रीतिदान ५०. तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स अम्मा-पियरो अयमेयारूवं पीतिदाणं दलयंति, तं जहा — अट्ठ - हिरण्ण्कोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, अट्ठ मउडे मउडप्पवरे, अट्ठकुंडलजोए १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५४८ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४७
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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