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________________ ८९ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११ सिखाना), कर्णवेधन (कान बिंधाना), संवत्सरप्रतिलेखन (वर्षगांठ-मनाना), नक्खत्तः शिखा (चोटी) रखवाना और उपनयन संस्कार करना, इत्यादि तथा अन्य बहुत से गर्भाधान, जन्म-महोत्सव आदि कौतुक किये। ४७. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मा-पियरो सातिरेगऽट्ठवासगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणनक्खत्तमुहुत्तंसि एवं जहा दढप्पतिण्णो जाव' अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था। [४७] फिर उस महाबल कुमार के माता-पिता ने उसे आठ वर्ष से कुछ अधिक वय का जान कर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में कलाचार्य के यहाँ पढ़ने के लिए भेजा, इत्यादि समस्त वर्णन दृढप्रतिज्ञ कुमार के अमुसार करना चाहिए यावत् महाबल कुमार भोगों का उपभोग करने में समर्थ (तरुण) हुआ। विवेचन—प्रस्तुत तीन सूत्रों (४५ से ४७ तक) में चार तथ्यों का अतिदेशपूर्वक संक्षिप्त वर्णन किया है—(१) पांच धात्रियों द्वारा महाबल का सुखपूर्वक पालन, (२) क्रमश: चन्द्र-सूर्यदर्शन आदि सभी संस्कारों (कौतुक) का निरूपण और (३) पढ़ने के लिए कलाचार्य के पास भेजना, (४) महाबल का भोगसमर्थ अर्थात् तरुण हो जाना। बल राजा द्वारा राजकुमार के लिए प्रासादनिर्माण ४८. तए णं तं महब्बलं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाव अलंभोगसमत्थं विजाणित्ता अम्मापियरो अट्ठ पासायवडेंसए कारेंति। अब्भुग्गयमूसिय पहसिते इव वण्णओ जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पडिरूवे। तेसि णं पासायवडेंसगाणं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगं भवणं कारेंति अणेगखंभसयसन्निविटुं, वण्णओ जहा रायप्पसेणइज्जे पेच्छाघरमंडवंसि जाव पडिरूवं। [४८] महाबल कुमार को बालभाव से उन्मुक्त यावत् पूरी तरह भोग-समर्थ जानकर माता-पिता ने उसके लिए आठ सर्वोत्कृष्ट प्रासाद बनवाए। वे प्रासाद राजप्रश्नीयसूत्र (में वर्णित प्रासाद-वर्णन) के अनुसार अत्यन्त ऊँचे यावत् सुन्दर (प्रतिरूप) थे। उन आठ श्रेष्ठ प्रासादों के ठीक मध्य में एक महाभवन तैयार करवाया, जो अनेक सैकड़ों स्तंभों पर टिका हुआ था। उसका वर्णन भी राजप्रश्नीयसूत्र के प्रेक्षागृहमण्डप के वर्णन के अनुसार जान लेना चाहिए यावत् वह अतीव सुन्दर था। विवेचन—प्रस्तुत ४८ वें सूत्र में महाबल कुमार के माता-पिता द्वारा उसके लिए आठ श्रेष्ठ प्रासाद और मध्य में एक महाभवन बनवाने का उल्लेख है। अब्भुग्गयमूसिय-अत्यन्त उच्चता को प्राप्त। पहसिते इव-मानो हँस रहा हो, इस प्रकार का प्रबल श्वेतप्रभापटल था। "एवं जहा दढप्पतिण्णो" इत्यादि से सूचित पाठ-"सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तं-मुहत्तंसि ण्हायंकयबलिकम्म कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं महया इड्ढिसक्कारसमुदएणं कलायरियस्स उवणयंति इत्यादीति" -अ.वृ. २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा. २ (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ५४७ ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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