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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
कराए गए, (३) माता-पिता द्वारा प्रथम, तृतीय, छठे, ग्यारहवें एवं बारहवें दिवस तक के पुत्रजन्म उत्सव से सम्बन्धित विविध कार्यक्रम सम्पन्न कराए, (४) मित्र, ज्ञातिजन आदि सबको आमंत्रित कराया, भोजन तैयार कराया, भोजन कराया। (५) तदनन्तर कुलपरम्परानुसार बालक का गुणनिष्पन्न नाम महाबल रखा।
कठिन शब्दों का भावार्थ-चारगसोहणं-कारागार खाली करना—कैदियों को छोड़ना । उस्सुक्कं शुल्करहित, उक्करं—कर रहित । उक्किटुं— भूमिकर्षण-रहित ।अभडप्पवेसं—प्रजा के घर में सुझट-प्रवेश निषिद्ध । अदिजं—नहीं देने योग्य, अदेय।अमिजं—नापने-तौलने योग्य नहीं।अदंड-कोदंडिमं—दण्डयोग्य द्रव्य तथा कुदण्डयोग्य द्रव्य के ग्रहण से रहित । अधरिमं—ऋण लेने-देने में होने वाले झगड़ों को रोकने में धारणीय द्रव्य में रहित। गणिया-वर-णाडइज्ज-कलियं—प्रधानगणिकाओं तथा नाटक करने वालों से युक्त। अणेयतालाचराणचरियं-अनेक तालचरों के द्वारा ताल आदि बजाने की सेवाओं से युक्त। अणुद्धयमहंग-मदंगों को निरन्तर उन्मुक्तरूप से बजाने वाले वादकों से यक्त। ठितिवडियं—स्थितिपतितपुत्रजन्ममहोत्सव । जाए—याग-पूजा। दाए-दान । भाए—भाग।असुइजायकम्मकरणं अशुचिनिवारणरूप जातक करना। अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागयं पितामह, प्रपितामह एवं पिता के प्रपितामह द्वारा आया हुआ। बहुपुरिसपरंपरप्परूढं—अनेक पूर्वपुरुषों की परम्परा—पीढ़ियों से रूढ़। गोण्णं-गुणानुसार। महाबल का पंच धात्रियों द्वारा पालन एवं तारुण्यभाव ... ४५. तए णं से महब्बले दारए पंचधातीपरिग्गहिते, तं जहा—खीरधातीए एवं जहा दढप्पतिण्णे जाव निवातनिव्वाघातंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ।
[४५] तदनन्तर उस बालक महाबल कुमार का—१. क्षीरधात्री, २. मजनधात्री, ३. मण्डनधात्री, ४. क्रीडनधात्री और ५. अंकधात्री, इन पांच धात्रियों द्वारा राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित दृढप्रतिज्ञ कुमार के समान लालन-पालन होने लगा यावत् वह महाबल कुमार वायु और व्याघात से रहित स्थान में रही हुई चम्पकलता के समान अत्यन्त सुखपूर्वक बढ़ने लगा।
४६. तए णं तस्स महब्बलस्स दारगस्स अम्मा-पियरो अणुपुव्वेणं ठितिवडियं वा चंद-सूरदंसावणियं वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामणं वा पयचंकमावणं वा जेमावणं वा पिंडवद्धणं वा पजंपामणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा अन्नाणि य बहूणि गब्भाधाणजम्मणमादियाइं कोतुयाइं करेंति।
[४६] साथ ही, महाबल कुमार के माता-पिता ने अपनी कुलमर्यादा की परम्परा के अनुसार (जन्मदिन से लेकर) क्रमश: चन्द्र-सूर्य-दर्शन, जागरण, नामकरण, घुटनों के बल चलना (परंगामन), पैरों से चलना (पाद-चक्रमापन), अन्नप्राशन (अन्न-भोजन का प्रारम्भ करना), ग्रासवर्द्धन (कौर बढ़ाना), संभाषण (बोलना
५. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५४६-५४७ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४४-५४५ ३. औपपातिक सूत्र में सूचित पाठ—'मजणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए, अंकधाईए इत्यादि।'
- औप. सू. ४०, पत्र ९८