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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११ ८७ में सम्मिलित थे।) इस प्रकार दस दिनों तक राजा द्वारा पुत्रजन्म महोत्सव प्रक्रिया (स्थितिपतिता—कुलमर्यादागत प्रक्रिया) होती रही। ४३. तएणं से बले राया दसाहियाए ठितिवडियाए वट्टमाणीए सतिए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य सतिए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य लाभे पडिच्छेमाणे य पडिच्छावेमाणे-य एवं विहरति। [४३] इन दस दिनों की पुत्रजन्म सम्बन्धी महोत्सव-प्रक्रिया (स्थितिपतिता) जब प्रवृत्त हो (चल) रही थी, तब बल राजा सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के खर्च वाले याग-कार्य करता रहा तथा दान और भाग देता और दिलवाता हुआ एवं सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के लाभ (उपहार) देता और स्वीकारता रहा। ४४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूरदंसावणियं करेंति, छढे दिवसे जागरियं करेंति। एक्कारसमे दिवसे वीतिकंते, निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे, संपत्ते बारसाहदिवसे विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, उ० २ जहा सिवो (स. ११ उ. ९ सु. ११) जाव खत्तिए य आमंतेंति, आ० २ ततो पच्छा हाता कत० तं चेव जाव सक्कारेंति सम्माणति, स० २ तस्सेव मित्त-णाति जाव राईण य खत्तियाण य पुरितो अजयपजयपिउपजयागयं बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुवद्धणकरं अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेनं करेंति—जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रणो पुत्ते पभावतीए देवीय अत्तए तं होउ णं अहं इमस्स दारयस्स नामधेनं महब्बले। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेजं करेंति 'महब्बले' त्ति। _[४४] तदनन्तर उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन कुलमर्यादा के अनुसार प्रक्रिया (स्थितिपतिता) की। तीसरे दिन (बालक को) चन्द्र-सूर्य-दर्शन की क्रिया की। छठे दिन जागरिका (जागरणरूप उत्सव क्रिया) की। ग्यारह. दिन व्यतीत होने पर अशुचि जातककर्म से निवृत्ति की। बारहवाँ दिन आने पर विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम (चतुर्विध आहार) तैयार कराया। फिर (श. ११, उद्देशक ९, सू. ११ में कथित) शिव राजा के समान यावत् समस्त क्षत्रियों यावत् ज्ञातिजनों को आमंत्रित किया और भोजन कराया। इसके पश्चात् स्नान एवं बलिकर्म किए हुए राजा ने उन सब मित्र, ज्ञातिजन आदि का सत्कार-सम्मान किया और फिर उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन यावत् राजा और क्षत्रियों के समक्ष अपने पितामह, प्रपितामह एवं पिता के प्रपितामह आदि से चले आते हुए, अनेक पुरुषों की परम्परा से रूढ़, कुल के अनुरूप, कुल के सदृश (योग्य) कुलरूप सन्तान-तन्तु की वृद्धि करने वाला, गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न ऐसा नामकरण करते हुए कहा—चूंकि हमारा यह बालक बल राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, इसलिए (हम चाहते हैं कि) हमारे इस बालक का 'महाबल' नाम हो। अतएव उस बालक के माता-पिता ने उसका नाम 'महाबल' रखा। विवेचन—प्रस्तुत पांच सूत्रों (४० से ४४ तक) में निम्नोक्त घटनाक्रम का वर्णन किया गया है—(१) बल राजा द्वारा कौटुम्बिक पुरुषों को नगर-स्वच्छता, कैदियों को मुक्ति, नापतौल में वृद्धि, पूजा आदि से पुत्रजन्मोत्सव की तैयारी का आदेश, (२) दस दिनों के पुत्र-जन्ममहोत्सव में अनेक प्रकार के आयोजन राजा द्वारा
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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