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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अंग - परिचारिकाओं का मस्तक धोने की क्रिया, उनको दासत्व से मुक्त करने की प्रतीक है। जिस दासी का मस्तक धो दिया जाता था, उसे उस युग में दासत्व से मुक्त समझा जाता था ।
पुत्रजन्म - महोत्सव एवं नामकरण का वर्णन
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४०. तणं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति, को० स० एवं वदासी— खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! हत्थिणापुरे नगरे चारगसोहणं करेह, चा० क० २ माणुम्मावणड्ढणं करेह, मा० क० २ हथिणापुरं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसियसम्मज्जियोवलित्तं जाव करेह व कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य, जूवसहस्सं वा, चक्कसहस्सं वा, पूयामहामहिमसक्कारं वा ऊसवेह, ऊ० २ ममेतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।
[४०] इसके पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें इस प्रकार कहा 'देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर नगर में शीघ्र ही चारक- शोधन अर्थात् — बन्दियों का विमोचन करो, और मान (नाप) तथा उन्मान (तौल) में वृद्धि करो। फिर हस्तिनापुर नगर के बाहर और भीतर छिड़काव करो, सफाई करो और लीप-पोत कर शुद्धि (यावत्) करो - कराओ । तत्पश्चात् यूप ( जूवा) सहस्र और चक्रसहस्र की पूजा, महामहिमा और सत्कारपूर्वक उत्सव करो। मेरे इस आदेशानुसार कार्य करके मुझे पुनः निवेदन करो।'
४१. तणं ते कोडुंबियपुरिसा बलेण रण्णा एवं वुत्ता जाव पच्चपिणंति ।
[४१] तदनन्तर बल राजा के उपर्युक्त आदेशानुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार कार्य हो जाने का निवेदन किया ।
४२. तए णं से बले राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ तं चेव जाव मज्जणघराओ पडिनिक्खमति, प० २ उस्सुंकं उक्करं उक्किट्ठे अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंडको दंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लादामं पमुइयपक्कीलियं सपुरजणजाणवयं दसदिवसे ठितिवडियं करेति ।
[४२] तत्पश्चात् बल राजा व्यायामशाला में गये । वहाँ जाकर व्यायाम किया और स्नानादि किया, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए; यावत् बल राजा स्नानगृह से निकले। (नरेश ने दस दिन के लिए) प्रजा से शुल्क तथा कर लेना बन्द कर दिया, भूमि के कर्षण — जोतने का निषेध कर दिया, क्रय विक्रय का निषेध कर देने से किसी को कुछ मूल्य देना, या नाप-तौल करना न रहा । कुटुम्बिकों (प्रजा) के घरों में सुभटों का प्रवेश बन्द कर दिया। राजदण्ड से प्राप्य दण्ड द्रव्य तथा अपराधियों को दिये गये कुदण्ड से प्राप्य द्रव्य लेने का निषेध कर दिया। किसी को ऋणी न रहने दिया जाए। इसके अतिरिक्त (वह उत्सव ) प्रधान गणिकाओं तथा नाटक सम्बन्धी पात्रों से युक्त था । अनेक प्रकार के तालानुचरों द्वारा निरन्तर करताल आदि तथा वादकों द्वारा मृदंग उन्मुक्त रूप से बजाए जा रहे थे । बिना कुम्हलाई हुई पुष्पमालाओं (से यत्रतत्र सजावट की गई थी।) उसमें आमोद-प्रमोद और खेलकूद करने वाले अनेक लोग भी थे। सारे ही नगरजन एवं जनपद के निवासी (इस उत्सव
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४३