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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११ पडिबुझंति, तं जहा
गय वसह सीह अभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुंभं।
'पउमसर सागर विमाण-भवण रयणुच्चय सिहिं च॥१॥ वासुदेवमायरो णं वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरे सत्त महासुविणे पासित्ताणं पडिबुझंति। बलदेवमायरो बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अनयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ताणं पडिबुझंति। मंडलियमायरो मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एतेसिं चोइसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं एगं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुझंति।"
[३३-२] "हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न और तीस महास्वप्न, इस प्रकार कुल बहत्तर स्वप्न बताये हैं। तीर्थंकर की माताएं या चक्रवर्ती की माताएँ, जब तीर्थंकर या चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं, तब इन तीस महास्वप्नों में से ये १४ महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं। जैसे कि—(१) गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) अभिषिक्त लक्ष्मी, (५) पुष्पमाला, (६) चन्द्रमा, (७) सूर्य, (८) ध्वजा, (९) कुम्भ. (कलश), (१०) पद्म-सरोवर, (११) सागर, (१२) विमान या भवन, (१३) रत्नराशि और (१४) निधूम अग्नि ॥१॥
___ जब वासुदेव गर्भ में आते हैं, तब वासुदेव की माताएँ इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी सात महास्वप्न देखकर जागती हैं। जब बलदेव गर्भ में आते हैं, तब बलदेव-माताएँ इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी चार महास्वप्न देखकर जागती हैं । माण्डलिक जब गर्भ में आते हैं, तब माण्डलिक की माताएँ, इन में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागती हैं।" __[३] "इमे य णं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए एगे महासुविणे दिवे, तं ओराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-जाव मंगल्लकारए णं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे । अत्थलाभो देवाणुप्पिया ! भोगलाभो० पुत्तलाभो० रजलाभो देवाणुप्पिया!"
[३३-३] "हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इस (चौदह महास्वप्नों) में से एक महास्वप्न देखा है। अत: "हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है, सचमुच प्रभावती देवी ने यावत् आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है। (यह स्वप्न सुख-समृद्धि का सूचक है।) हे देवानुप्रिय ! इस स्वप्न के फलरूप आपको अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ एवं राज्यलाभ होगा।"
[४] "एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव वीतिक्ताणं तुम्हं कुलकेउं जाव पयाहिति। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे जाव रजवती राया भविस्सति, अणगारे वा भावियप्पा। तं ओराले णं देवाणुप्पिया ? पभावतीए देवीए सुविणे दिढे जाव आरोग्गतुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण जाव दिढे।" _ [३३-१] अतः, हे देवानुप्रिय ! यह निश्चित है कि प्रभावती देवी नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर आपके कुल में ध्वज (केतु) के समान यावत् पुत्र को जन्म देगी। वह बालक भी बाल्यावस्था पार करने पर यावत् राज्याधिपति राजा होगा अथवा वह भावितात्मा अनगार होगा। इसलिए हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी