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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११
'७९ ३०. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्स रणो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडि० २ सिग्धं तुरियं चवलं चंडं वेइयंहत्थिणापुर नगरं मझमझेणं जेणेव तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, ते० उ० २ ते सुविणलक्खणपाढए सद्दावेंति।
___ [३०] इस पर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् राजा का आदेश स्वीकार किया और राजा के पास से निकले। फिर वे शीघ्र, चपलता युक्त, त्वरित, उग्र (चण्ड) एवं वेग वाली तीव्र गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर जहाँ उन स्वप्नलक्षण-पाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और उन्हें राजाज्ञा सुनाई। इस प्रकार स्वप्नलक्षणपाठकों को उन्होंने बुलाया।
३१. तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रण्णो कोडुंबियपुरिसेहिं सदाविया समाणा हद्वतुटु० ण्हाया कय० जाव सरीरा सिद्धत्थग-हरियालियकयमंगलमुद्धाणा सएहिं सएहिं गिहेहिंतो निग्गच्छंति, स० नि० २ हत्थिणापुरं नयरं मझमझेणं जेणेव बलस्स रण्णो भवणवरवडेंसए तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उ० २ भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगतो मिलंति, ए० मि० २ जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, ते० उ० २ करयल० बलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति। तए णं ते सुविलक्खणपाढगा बलेणं रण्णा वंदियपूइयसक्कारियसम्माणिया समाणा पत्तेयं पत्तेयं पुव्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति।
[३१] वे स्वप्नलक्षण-पाठक भी बलराजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाए जाने पर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत किया। फिर वे अपने मस्तक पर सरसे से मंगल करके अपने-अपने घर से निकले, और हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर जहाँ बलराजा का उत्तम शिखररूप राज्य-प्रासाद था, वहाँ आए। उस उत्तम राजभवन के द्वार पर वे स्वप्नपाठक एकत्रित होकर मिले और जहाँ राजा की बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ सभी मिल कर आए। बलराजा के पास आ कर, उन्होंने हाथ जोड़ कर बलराजा को 'जय हो, विजय हो' आदि शब्दों से बधाया। बलराजा द्वारा वन्दित, पूजित, सत्कारित एवं सम्मानित किये गए वे स्वप्नलक्षण-पाठक प्रत्येक के लिए पहले से बिछाए हुए उन भद्रासनों पर बैठे।
विवेचन-सिंहांसनस्थ बल राजा द्वारा उपस्थानशाला में भद्रासन स्थापित करना एवं स्वप्नपाठक आमंत्रित करना—प्रस्तुत तीन सूत्रों (२८ से ३१) में निम्नोक्त वृत्तान्त प्रस्तुत किये गये हैं—(१) बलराजा का सुसज्जित होकर उपस्थानशाला में आगमन, (२) कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा वहाँ यवनिकों एवं भद्रासन लगवाए गए। (३) स्वप्नलक्षण-पाठकों को बुलाने का आदेश, (४) राजा का आमंत्रण पा कर स्वप्नलक्षणपाठकों का आगमन, आशीर्वचन, राजा द्वारा सत्कारित एवं अपने-अपने भद्रासन पर स्वप्नपाठक उपविष्ट ।
कठिन शब्दों का भावार्थ-पच्चूसकालसमयंसि—प्रभात काल के समय। सयणिज्जाओशय्या से। अट्टणसाला—व्यायामशाला। मजणघरे-स्नानगृह । अहिय-पेच्छणिजं-अधिक दर्शनीय। महग्घवरपट्टणुगयं–महामूल्यवान् श्रेष्ठ पट्टन में बना हुआ। सहपट्टभत्तिसयचित्तताणं-जिसके ऊपर का
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५४१-५४२