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________________ छठा शतक : उद्देशक-४ भंग कहने चाहिए। विभंगज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। १५.[१] सजोगी जहा ओहिओ।मणजोगी वयजोगी कायजोगी जीवादिओ तियभंगो, नवरं कायजोगी एगिंदिया तेसु अभंगकं। [१५-१] जिस प्रकार औधिक जीवों का कथन किया, उसी प्रकार सयोगी जीवों का कथन करना चाहिए। मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। विशेषता यह है कि जो काययोगी एकेन्द्रिय होते हैं, उनमें अभंगक (अधिक भंग नहीं, केवल एक भंग) होता है। [२] अजोगी जहा अलेसा। [१५-२] अयोगी जीवों का कथन अलेश्यजीवों के समान कहना चाहिए। १६. सागारोवउत्त-अणागारोवउत्तेहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [१६] साकार-उपयोग वाले और अनाकार-उपयोग वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। . १७. [१] सवेयगा य जहा सकसाई। इत्थिवेयग-पुरिसवेदग-नपुंसगवेदगेसु जीवादिओ तियभंगो, नवरं नपुंसगवेदे एगिदिएसु अभंगयं। [१७-१] सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान करना चाहिए। स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। विशेष यह है कि नपुंसकवेद में जो एकेन्द्रिय होते हैं, उनमें अभंगक (अधिक भंग नहीं, किन्तु एक भंग) है। [२] अवेयगा जहा अकसाई। [१७-२] जैसे अकषायी जीवों के विषय में कथन किया, वैसे ही अवेदक (वेदरहित) जीवों के विषय में कहना चाहिए। १८.[१] ससरीरी जहा ओहिओ।ओरालिय-वेउव्वियसरीरीणं जीवएगिंदियवजो तियभंगो। आहारगसरीरे जीव-मणुएसु छब्भंगा। तेयग-कम्मगाणं जहा ओहिया। __ [१८-१] जैसे औधिक जीवों का कथन किया, वैसे ही सशरीरी जीवों के विषय में कहना चाहिए। औदारिक और वैक्रिय शरीर वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। आहारक शरीर वाले में जीव और मनुष्य में छह भंग कहने चाहिए। तैजस और कार्मण शरीर वाले जीवों का कथन औधिक जीवों के समान करना चाहिए। [२] असरीरेहिं जीव-सिद्धेहिं तियभंगो। [१८-२] अशरीरी, जीव और सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए। १९.[१]आहारपजत्तीए सरीरपजत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणपजत्तीए जीवेगिंदियवज्जो
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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