SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३] सम्मामिच्छद्दिट्ठीहिं छब्भंगा। [११-३] सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिए। १२.[१] संजतेहिं जीवाइओ तियभंगो। [१२-१] संयतों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। [२] असंजतेहिं एगिदियवजो तियभंगो। [१२-२] असंयतों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए। [३] संजतासंजतेहिं तियभंगो जीवादिओ। [१२-३] संयतासंयत जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। [४] नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजतासंजत जीव-सिद्धेहिं तियभंगो। [१२-४] नोसंयत-नोअसंयत-नोसांतासंयत जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। १३.[१]सकसाइहिं जीवादिओ तियभंगो।एगिदिएसु अभंगकं।कोहकसाईहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।देवेहि छब्भंगा।माणकसाई मायाकसाई जीवेगिंदियवजो तियभंगो।नेरतिय देवेहिं छब्भंगा। लोभकसायीहिं जीवेगिंदियवजो तियभंगो। नेरतिएसु छब्भंगा। [१३-१] सकषायी (कषाययुक्त)जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। एकेन्द्रिय (सकषायी) में . अभंगक (तीन भंग नहीं, किन्तु एक भंग) कहना चाहिए। क्रोधकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए। मानकषायी और मायाकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिकों और देवों में छह भंग कहने चाहिए। लोभकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए। [२] अकसाई जीव-मणुएहिं सिद्धेहिं तियभंगो। [१३-२] अकषायी जीवों, जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। १४. [१] ओहियनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे जीवादिओ तियभंगो। विगलिंदिएहिं छब्भंगा। ओहिनाणे मणपज्जवणाणे केवलनाणे जीवादिओ तियभंगो। । [१४-१] औधिक (समुच्चय) ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए। अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चहिए। [२] ओहिए अण्णाणे मतिअण्णाणे सुयअण्णाणे एगिदियवजो तियभंगो। विभंगणाणे जीवादिओ तियभंगो। [१४-२] औधिक (समुच्चय) अज्ञान, मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy