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छठा शतक : उद्देशक-४
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८. [ १ ] भवसिद्धीया अभवसिद्धीया जहा ओहिया ।
[८-१] भवसिद्धिक (भव्य) और अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों के लिए औधिक (सामान्य) जीवों की तरह कहना चाहिए ।
[२] नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिया जीव- सिद्धेहिं तियभंगो ।
[८-२] नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए। ९. [१] सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो ।
[९-१] संज्ञी जीवों में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए।
[ २ ] असण्णीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो । नेरइय- देव - मणूएहिं छब्भंगा ।
[९-२] असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए ।
[ ३ ] नोसण्णि-नोअसण्णिणो जीव- मणुय-सिद्धेहिं तियभंगो ।
[९-३] नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए ।
१०. [ १ ] सलेसा जहा ओहिया । कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ, नवरं जस्स अत्थि एयाओ । तेउलेस्साए जीवादिओ तियभंगो, नवरं पुढविकाइएसु आउ-वणप्फतीए छब्भंगा। पम्हलेस-सुक्कलेस्साए जीवाइओ तियभंगो ।
[१०-१] सलेश्य (लेश्या वाले) जीवों का कथन, औघिक जीवों की तरह करना चाहिए। कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या वाले जीवों का कथन आहारक जीव की तरह करना चाहिए। किन्तु इतना विशेष है कि जिसके जो लेश्या हो, उसके वह लेश्या कहनी चाहिए। तेजोलेश्या में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए। पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए।
[२] अलेसेहिं जीव - सिद्धेहिं तियभंगो, मणुएसु छब्भंगा ।
[१०-२] अलेश्य (लेश्यारहित ) जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए तथा अलेश्य मनुष्यों में (पूर्ववत्) छह भंग कहने चाहिए ।
११. [ १ ] सम्मद्दिट्ठीहिं जीवाइओ तियभंगो । विगलिंदिएसु छब्भंगा।
[११-१] सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए ।
[२] मिच्छद्दिट्ठीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो ।
[११-२] मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए ।