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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
सक्कंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं० सेसं जहा चमरस्स (सु. ६-७ )। नवरं परियारो जहा मोउद्देसए ( स. ३ उ. १ सु. १५ ) ।
[ ३२ प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, सौधर्मकल्प में, सौधर्मावतंसक विमान में सुधर्मासभा में, शक्र नामक सिंहासन पर बैठ कर अपने (उक्त) त्रुटिक के साथ भोग भोगने में समर्थ है ?
[३२ उ.] आर्यो! इसका समग्र वर्णन चमरेन्द्र के समान (सू. ६-७ के अनुसार) जानना चाहिए। विशेष इतना है कि इसके परिवार का कथन भगवतीसूत्र के तीसरे शतक में 'मोका' नामक प्रथम उद्देशक (सू. १५) के अनुसार जान लेना चाहिए।
३३. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ० पुच्छा ।
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा- रोहिणी मदणा चित्ता सोमा । तत्थ णं एगमेगा०, सेसं जहा चमरलोगपालाणं (सु. ८-१३) | नवरं सयंपभे विमाणे सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव । एवं जाव' वेसमणस्स, नवरं विमाणाइं जहा ततियसए (स. ३ उ. ७ सु. ३)।
[३३ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [३३ उ.] आर्यो ! चार अग्रमहिषियाँ हैं। वे इस प्रकार - (१) रोहिणी, (२) मदना, (३) चित्रा और (४) सोमा। इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी- परिवार का वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के समान (सू. ८१३ के अनुसार) जानना चाहिए। किन्तु इतना विशेष है कि स्वयम्प्रभ नामक विमान में, सुधर्मासभा में, सोम नामक सिंहासन पर बैठ कर मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए । इसी प्रकार वैश्रमण लोकपाल तक का कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि इनके विमान आदि का वर्णन (भगवती.) तृतीयशतक के सातवें उद्देशक (सू. ३) में कहे अनुसार जानना चाहिए।
विवेचन — शक्रेन्द्र तथा उसके लोकपालों की देवियों आदि का वर्णन — प्रस्तुत तीन सूत्रों में शक्रेन्द्र की अग्रमहिषियों तथा उनके अधीनस्थ देवियों के परिवार का एवं सुधर्मासभा में उनके साथ मैथुननिमित्तक भोग भोगने की असमर्थता का प्रतिपादन किया गया है।
ईशानेन्द्र तथा उसके लोकपालों का देवी परिवार
३४. ईसाणस्स णं भंते ! ० पुच्छा ।
अज्जो ! अट्ठ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा— कण्हा कण्हराई रामा रामरक्खिया वसू वसुगुत्ता वसुमित्ता वसुंधरा । तत्थ णं एगमेगाए०, सेसं जहा सक्कस्स ।
१.
'जाव पद से यहाँ यम, वरुण' समझना चाहिए ।
२. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भा. २, पृ. ५०३