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________________ दशम शतक : उद्देशक-५ ६३५ सेसं तं चेव। [२९ प्र.] भगवन् ! अंगार (मंगल) नामक महाग्रह की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? । [२९ उ.] आर्यो ! (अंगार-महाग्रह की) चार अग्रमहिषियाँ हैं । वे इस प्रकार—(१) विजया, (२) वैजयन्ती, (३) जयन्ती और (४) अपराजिता। इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी-परिवार का वर्णन चन्द्रमा के देवी-परिवार के समान जानना चाहिए। परन्तु इतना विशेष है कि इसके विमान का नाम अंगारावतंसक और सिंहासन का नाम अंगारक है, (जिस पर बैठ कर वह देवी-परिवार के साथ मैथुननिमित्तक भोग नहीं भोग सकताः इत्यादि शेष समग्रवर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। ३०. एवं वियालगस्स वि। एवं अट्ठासीतीए वि महागहाणं भाणियव्वं जाव भावकेउस्स। नवरं वडेंसगा सीहासणाणि य सरिसनामगाणि। सेसं तं चेव। [३०] इसी प्रकार व्यालक नामक ग्रह के विषय में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार ८८ महाग्रहों के विषय में भावकेतु ग्रह तक जानना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि अवतंसकों और सिंहासनों का नाम इन्द्र के नाम के अनुरूप है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। विवेचन–चन्द्र, सूर्य और ग्रहों की देवियों की संख्या- प्रस्तुत ४ सूत्रों (२७ से ३० तक) में चन्द्र, सूर्य, अंगारक, व्यालक आदि ८८ महाग्रहों की अग्रमहिषियों तथा देवी-परिवार आदि का अतिदेशपूर्वक निरूपण किया गया है। शक्रेन्द्र और उसके लोकपालों का देवी-परिवार ___३१. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो० पुच्छा। अजो! अट्ठ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—पउमा सिवा सुयो अंजू अमला अच्छरा नवमिया रोहिणी। तत्थ णं एगमेगाए देवीए सोलस सोलस देविसहस्सा परियारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं सोलस सोलस देविसहस्सा परियारं विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठावीसुत्तर देविसयसहस्सं, से तं तुडिए। [३१ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [३१ उ.] आर्यो! आठ अग्रमहिषियाँ हैं, यथा—(१) पद्मा, (२) शिवा, (३) श्रेया, (४) अंजू, (५) अमला, (६) अप्सरा, (७) नवमिका और (८) रोहिणी। इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी का सोलह-सोलह हजार देवियों का परिवार कहा गया है। प्रत्येक देवी-सोलह-सोलह हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वीपर सब मिलाकर एक लाख अट्ठाईस हजार देवियों का परिवार होता है। यह एक त्रुटिक (देवियों का वर्ग) कहलाता है। ३२. पभूणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५०२-५०३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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