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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र । इन आठों के प्रत्येक समूह के दो-दो इन्द्रों के नाम (१) पिशाच के दो इन्द्र—काल और महाकाल, (२) यक्ष के दो इन्द्र–पूर्णभद्र और माणिभद्र, (३) भूत के दो इन्द्र-सुरूप और प्रतिरूप, (४) सक्षस के दो इन्द्र—भीम और महाभीम, (५) किन्नर के दो इन्द्र–किनर और किम्पुरुष, (६) किम्पुरुष के दो इन्द्र-सत्पुरुष और महापुरुष, (७) महोरग के दो इन्द्र—अतिकाय और महाकाय तथा (८) गन्धर्व के दो इन्द्र-गीतरति और गीतयश।'
इनके प्रत्येक के चार अग्रमहिषियाँ हैं और प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी-परिवार की संख्या एक-एक हजार है। अर्थात्-प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार देवी-वर्ग हैं। इन इन्द्रों की राजधानी और सिंहासन का नाम अपने-अपने नाम के अनुरूप होता है। ये सभी इन्द्र अपनी-अपनी सुधर्मा सभा में अपने देवीपरिवार के साथ मैथुननिमित्तक भोग नहीं भोग सकते। चन्द्र-सूर्य-ग्रहों के देवीपरिवार आदि का निरूपण
२७. चंदस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो० पुच्छा।
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा। एवं जहा जीवाभिगमे जोतिसियउद्देसए तहेव।
[२७ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ?
[२७ उ.] आर्यो! ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ हैं । वे इस प्रकार—(१) चन्द्रप्रभा, (२) ज्योत्स्नाभा, (३) अर्चिमाली एवं (४) प्रभंकरा। शेष समस्त वर्णन जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के द्वितीय उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए।
२८. सूरस्स वि सूरप्पभा आयवाभा अच्चिमाली पभंकरा। सेसं तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं।
[२८] इसी प्रकार सूर्य के विषय में भी जानना चाहिए। सूर्येन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ ये हैं—सूर्यप्रभा, आतपाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा। शेष सब वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् वे अपनी राजधानी की सुधर्मा सभा में सिंहासन पर बैठ कर अपने देवीपरिवार के साथ मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं हैं।
२९. इंगालस्स णं भंते! महग्गहस्स कति अग्ग० पुच्छा।
अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—विजया वेजयंती जयंती अपराजिया। तत्थ णं एगमेगाए देवीए०, सेसं जहा चंदस्स नवरं इंगालवडेंसए विमाणे इंगालगंसि सीहासणंसि।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५०१-५०२ २. वही, पृ. ५०२ ३. देखिये—जीवाभिगमसूत्र प्रतिपत्ति ३, उ. २, सू. २०२-४, पत्र ३७५-८५ (आगमोदय.)