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दशम शतक : उद्देशक - ५
[ ३४ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज ईशान की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ?
[३४ उ.] आर्यो ! ईशानेन्द्र की आठ अग्रमहिषियाँ हैं । यथा – (१) कृष्णा, (२) कृष्णराजि, (३) रामा, (४) रामरक्षिता, (५) वसु, (६) वसुगुप्ता, (७) वसुमित्रा, (८) वसुन्धरा । इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी की देवियों के परिवार आदि का शेष समस्त वर्णन शक्रेन्द्र के समान जानना चाहिए।
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३५. ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स सोमस्स महारण्णो कति० पुच्छा ।
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा — पुढवी राती रयणी बिज्जू । तत्थ णं०, से जहा सक्कस्स लोगपालाणं । एवं जाव वरुणस्स, नवरं विमाणा जहा चउत्थसए (स. ४ उ. १ सु. ३ ) सेसं तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ ।
॥ दसमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥
[ ३५ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र ईशान के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ?
[३५ उ.] आर्यो! चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा- पृथ्वी, रात्रि, रजनी और विद्युत् । इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी की देवियों के परिवार आदि शेष समग्र वर्णन शक्रेन्द्र के लोकपालों के समान है। इसी प्रकार वरुण लोकपाल तक जानना चाहिए। विशेष यह है कि इनके विमानों का वर्णन चौथे शतक के प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्, यावत् — वह मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर आर्य स्थविर यावत् विचरण करते हैं ।
विवेचन — ईशानेन्द्र एवं उसके लोकपालों का देवी - परिवार — प्रस्तुत दो सूत्रों (३४-३५) में ईशानेन्द्र (द्वितीय देवलोक के इन्द्र) तथा उसके लोकपालों की अग्रमहिषियों आदि का वर्णन पूर्वसूत्र का अतिदेश करके किया गया है। चूंकि वैमानिक देवों में केवल पहले और दूसरे देवलोक तक ही देवियाँ उत्पन्न होती हैं, इसलिए यहाँ प्रथम और द्वितीय देवलोक के इन्द्रों और उनके लोकपालों की अग्रमहिषियों का वर्णन किया गया है।"
॥ दशम शतक : पंचम उद्देशक समाप्त ॥
१. भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ४, पृ. १८३९