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________________ छठा शतक : उद्देशक-३ ३३ __ (२)संयतद्वार - सामायिक, छेदोपस्थपनिक, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसम्पराय, इन चार संयमों में रहने वाला संयत जीव ज्ञानावरणीय को बांधता है, किन्तु यथाख्यातसंयमवर्ती संयत जीव उपशान्तमोहादि वाला होने से ज्ञानावरणीयकर्म को नहीं बांधता; इसीलिए कहा गया है - संयत भजना से ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता है, किन्तु असंयत (मिथ्यादृष्टि आदि जीव) और संयतासंयत (पंचमगुणस्थानवर्ती देशविरत) जीव, ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हैं। जबकि नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत (अर्थात्-सिद्ध) जीव न तो ज्ञानावरणीयकर्म बांधते हैं और न ही आयुष्यादि अन्य कर्म । क्योंकि उनके कर्मबंध का कोई कारण नहीं रहता। संयत, असंयत और संयतासंयत, ये तीनों पूर्ववत् आयुष्यबंधकाल में आयुष्य बांधते हैं, अन्यथा नहीं बांधते। (३)सम्यग्दृष्टि- सम्यग्दृष्टि के दो भेद हैं—सराग-सम्यग्दृष्टि और वीतराग-सम्यग्दृष्टि । जो वीतरागसम्यग्दृष्टि हैं, वे ज्ञानावरणीकर्म को नहीं बांधते, क्योंकि वे तो केवल एकविध वेदनीयकर्म के बन्धक हैं, जबकि सराग-सम्यग्दृष्टि ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हैं। इसलिए कहा है सम्यग्दृष्टि ज्ञानावरणीयकर्म कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता। मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि तो ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हैं । सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव आयुष्यकर्म को कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते; इस कथन का आशय यह है कि अपूर्वकरणादि सम्यग्दृष्टि जीव आयुष्य को नहीं बांधते, जबकि इनसे भिन्न चतुर्थ आदि गुणस्थानों वाले सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि जीव पूर्ववत् आयुष्यबन्धकाल में आयुष्य को बांधते हैं, दूसरे समय में नहीं बांधते। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में (मिश्रदृष्टि अवस्था में) आयुष्य बांधने के अध्यवसाय-स्थानों का अभाव होने से आयुष्य बांधते ही नहीं हैं। (४) संज्ञीद्वार - मनपर्याप्ति वाले जीवों को संज्ञी कहते हैं । वीतरागसंज्ञी जीव ज्ञानावरणीयकर्म को नहीं बांधते, जबकि सरागसंज्ञी जीव इसे बांधते हैं, इसलिए कहा गया है - संज्ञी जीव ज्ञानावरणीयकर्म को कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, किन्तु मनःपर्याप्ति से रहित असंज्ञी जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते ही हैं। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीवों के तीन भेद होते हैं—सयोगी केवली, अयोगी केवली और सिद्ध भगवान्, इनके ज्ञानावरणीयकर्म के बंध के कारण न होने से ज्ञानावरणीयकर्म नहीं बांधते । अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् के सिवाय शेष सभी संज्ञी जीव एवं असंज्ञी जीव वेदनीयकर्म को बांधते हैं तथा पूर्वोक्त आशयानुसार संज्ञी और असंज्ञी, ये दोनों आयुष्यकर्म को भजना से बांधते हैं। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव आयुष्यकर्म को बांधते ही नहीं हैं। (५)भवसिद्धिकद्वार-जो भवसिद्धिक वीतराग होते हैं, वे ज्ञानावरणीयकर्म नहीं बांधते, किन्तु जो भवसिद्धिक सराग होते हैं, वे इस कर्म को बांधते हैं, इसीलिए कहा गया है - भवसिद्धिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को भजना से बांधते हैं। अभवसिद्धिक तो ज्ञानावरणीयकर्म बांधते ही हैं, जबकि नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक (सिद्ध) जीव ज्ञानावरणीयकर्म एवं आयुष्यकर्मादि को नहीं बांधते । भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक ये दोनों आयुष्यकर्म को पूर्वोक्त आशयानुसार कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते। (६) दर्शनद्वार – चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी, यदि छद्मस्थवीतरागी हों तो ज्ञानावरणीयकर्म को नहीं बांधते, क्योंकि वे केवल वेदनीयकर्म के बन्धक होते हैं । ये यदि सरागी-छद्मस्थ हों तो इसे बांधते है। इसीलिए कहा गया है कि ये तीनों ज्ञानावरणीयकर्म को भजना से बांधते हैं। भवस्थकेवलदर्शनी
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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