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________________ ६०४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वेदना का अनुभव किया जाता है। तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और मनुष्य में दोनों प्रकार की वेदनाएँ होती हैं, शेष बाईस दण्डकों में एकमात्र औपक्रमिकी वेदना होती है। वेदना के दो भेद : प्रकारान्तर से- निदा और अनिदा । विवेकसहित जो वेदी जाए वह निदावेदना है और विवेकपूर्वक न वेदी जाए वह अनिदावेदना है। नैरयिक, भवनपति, वाणव्यन्तर, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय एवं मनुष्य ये १४ दण्डकों के जीव दोनों प्रकार की वेदनाएँ वेदते हैं। इनमें जो संज्ञीभूत हैं वे निदा और जो असंज्ञीभूत हैं वे अनिदा वेदना वेदते हैं, यथा-असंज्ञीभूत पांच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय । ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के दो प्रकार हैं—मायी मिथ्यादृष्टि और अमायी सम्यग्दृष्टि । मायी मिथ्यादृष्टि अनिदावेदना वेदते हैं और अमायी सम्यग्दृष्टि निदावेदना वेदते हैं।' वेदनासम्बन्धी विस्तृत वर्णन प्रज्ञापनागत वेदनापद में है। मासिक भिक्षुप्रतिमा की वास्तविक आराधना ६. मासियं णं भंते ! भिक्खुपडिम पडिवनस्स अणगारस्स निच्चं वोसढे काये चियत्ते देहे, एवं मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियव्वा जहा दसाहिं जाव आराहिया भवति। [६ प्र.] भगवन् ! मासिक भिक्षुप्रतिमा जिस अनगार ने अंगीकार की है तथा जिसने शरीर (के प्रति ममत्व) का त्याग कर दिया है और (शरीरसंस्कार आदि के रूप में) काया का सदा के लिए व्युत्सर्ग कर दिया. है, इत्यादि दशाश्रुतस्कन्ध में बताए अनुसार (बारहवीं भिक्षुप्रतिमा तक) मासिक भिक्षु-प्रतिमा सम्बन्धी समग्र वर्णन करना चाहिए, यावत् (तभी) आराधित होती है आदि तक कहना चाहिए। विवेचन-भिक्षुप्रतिमा की वास्तविक आराधना—यहाँ छठे सूत्र में मासिक भिक्षुप्रतिमा को स्वीकार किये हुए भिक्षु की भिक्षुप्रतिमाऽऽराधना के विषय में दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा का हवाला देकर यह बताया है कि ऐसा भिक्षु स्नानादि शरीरसंस्कार के त्याग के रूप में काया का व्युत्सर्ग कर देता है तथा शरीर के प्रति ममत्व का त्याग कर देता है, ऐसी स्थिति में जो कोई परिषह या देवकृत, मनुष्यकृत या तिर्यञ्चकृत उपसर्ग उत्पन्न होते हैं, उन्हें सम्यक् प्रकार से सहता है, स्थान से विचलित न होकर क्षमाभाव धारण कर लेता है, दीनता न लाकर तितिक्षा करता है, समभाव से मन-वचन-काया से सहता है, तो उसकी भिक्षुप्रतिमा आराधित होती है। भिक्षुप्रतिमा : स्वरूप और प्रकार—साधु की एक प्रकार की प्रतिज्ञा (अभिग्रह) विशेष को भिक्षुप्रतिमा कहते हैं । यह बारह प्रकार की है। पहली से लेकर सातवीं प्रतिमा तक क्रमशः एक मास से लेकर सात मास की हैं। आठवीं, नौवी और दसवीं प्रतिमा प्रत्येक सात-अहोरात्र की होती है। ग्यारहवीं प्रतिमा एक १. (क) प्रज्ञापना. ३५ वाँ वेदनापद ____ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९७ २. (क) दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं साधुप्रतिमादशा, पत्र ४४-४६ । (मणिविजयग्रन्थमाला-प्रकाशन) (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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