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________________ दशम शतक : उद्देशक-२ ६०५ अहोरात्र की और बारहवीं भिक्षुप्रतिमा केवल एक रात्रि की होती है। इसका विस्तृत वर्णन दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा में है। भावार्थ-वोसढे काए-स्नानादि शरीरसंस्कार त्याग कर काय का व्युत्सर्ग कर दिया। चइत्ते देहे-(१) कोई भी व्यक्ति मारे-पीटे या शरीर पर प्रहार करे तो भी निवारण न करे, इस प्रकार से शरीर के प्रति ममत्व का त्याग कर दिया हो, अथवा चियत्ते-देह को धर्मसाधन के रूप में प्रधानता से मान कर। अकृत्यसेवी भिक्षु : कब अनाराधक, कब आराधक ? ७.[१]भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता, सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइयऽपडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा। [७-१] कोई भिक्षु किसी अकृत्य (पाप) का सेवन करके यदि उस अकृत्यस्थान की आलोचना तथा प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर (मर) जाता है तो उसके आराधना नहीं होती। [२] से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेति अस्थि तस्स आराहणा । [७-२] यदि वह भिक्षु उस सेवित अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है। ८.[१] भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता, तस्स णं एवं भवइ पच्छा वि णं अहं चरिमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि जाव पडिवज्जिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते जाव नत्थि तस्स आराहणा । [८-१] कदाचित् किसी भिक्षु ने किसी अकृत्यस्थान का सेवन कर लिया, किन्तु बाद में उसके मन में ऐसा विचार उत्पन्न हो कि मैं अपने अन्तिम समय में इस अकृत्यस्थान की आलोचना करूंगा यावत् तपरूप प्रायश्चित्त स्वीकार करूंगा, परन्तु वह उस अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर जाए तो उसके आराधना नहीं होती। [२] से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा । [८-२] यदि वह (अकृत्यस्थानसेवी भिक्षु) आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करे, तो उसके आराधना होती है। ९.[१] भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता, तस्स णं एवं भवइ—'जइ जाव समणोवासगा वि कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति किमंग पुण अहं अणपन्नियदेवत्तणं पि नो लभिस्सामि?,त्ति कटु से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयऽपडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा।' १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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