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________________ दशम शतक : उद्देशक-१ १०. जम्मा णं भंते ! दिसा किं जीवा०? जहा इंदा (सु. ८) तहेव निरवसेसं। [१० प्र.] भगवन्! याम्या (दक्षिण)-दिशा क्या जीवरूप है। इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [१० उ.] (गौतम!) ऐन्द्रीदिशा के समान सभी कथन (सू. ८ में उक्त) जानना चाहिए। ११. नेरई जहा अग्गेयी (सु. ९)। [११] नैर्ऋती विदिशा का (एतद्विषयक समग्र) कथन (सू. ९ में उक्त) आग्नेयी विदिशा के समान जानना चाहिए। १२. वारुणी जहा इंदा (सु.८)। [१२] वारुणी (पश्चिम)-दिशा का (इस सम्बन्ध में कथन) (सू. ८ में उक्त) एन्द्री दिशा के समान जानना चाहिए। १३. वायव्वा जहा अग्गेयी (सु. ९) [१३] वायव्वा विदिशा का कथन आग्नेयी के समान है। १४. सोमा जहा इंदा। [१४] सौम्या (उत्तर)-दिशा का कथन ऐन्द्रीदिशा के समान जान लेना चाहिए। १५. ईसाणी जहा अग्गेयी। [१५] ऐशानी विदिशा का कथन आग्नेयी के समान जानना चाहिए। १६. विमलाए जीवा जहा अग्गेईए, अजीवा जहा इंदाए। [१६] विमला (ऊर्ध्व)-दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान है तथा अजीवों का कथन ऐन्द्रीदिशा के समान है। १७. एवं तमाए वि, नवरं अरूवी छव्विहा। अद्धासमयो न भण्णति। [१७] इसी प्रकार तमा (अधोदिशा) का कथन भी जानना चाहिए। विशेष इतना ही है कि तमादिशा में अरूपी-अजीव के ६ भेद ही हैं, वहाँ अद्धासमय नहीं है। अतः अद्धासमय का कथन नहीं किया गया। शेष दिशा-विदिशाओं की जीव-अजीवप्ररूपणा—सू. १० से १७ तक आठ सूत्रों में निरूपित तथ्य का निष्कर्ष यह है कि शेष तीनों दिशाओं का जीव-अजीव सम्बन्धी कथन पूर्वदिशा के समान और शेष तीनों विदिशाओं का जीव-अजीव सम्बन्धी कथन आग्नेयीदिशा के समान जानना चाहिए। ऊर्ध्वदिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान तथा अजीव-सम्बन्धी कथन ऐन्द्री के समान जानना चाहिए। तमा (अधो)दिशा का भी जीव-अजीव-सम्बन्धी कथन ऊर्ध्वदिशावत् है किन्तु वहां गतिमान् सूर्य का प्रकाश न होने से
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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