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________________ ५९८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अद्धासमय का व्यवहार सम्भव नहीं है। अत: वहाँ अद्धासमय (काल) नहीं है। यद्यपि ऊर्ध्वदिशा में भी गतिमान् सूर्य का प्रकाश न होने से अद्धासमय का व्यवहार संभव नहीं है, तथापि मेरुपर्वत के स्फटिककाण्ड में गतिमान् सूर्य के प्रकाश का संक्रमण होता है। इसलिए वहाँ समय का व्यवहार सम्भव है।' शरीर के भेद-प्रभेद तथा सम्बन्धित निरूपण १८. कति णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता?. गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहा- ओरालिए जाव कम्मए । [१८ प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१८ उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे गए हैं। यथा—औदारिक, यावत् (वैक्रिय, आहारक, तैजस और) कार्मण शरीर। १९.ओरालियसरीरेणं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? एवं ओगाहणसंठाणपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव अप्पाबहुगं ति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति.। ॥दसमे सए पढमो उद्देसो समत्तो॥१०-१॥ [१९. प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [१९ उ.] (गौतम!) यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के (२१ वें) अवगाहन-संस्थान-पद में वर्णित समस्त वर्णन अल्पबहुत्व तक करना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है! विवेचन–शरीर : प्रकार तथा अवगाहनादि-प्रस्तुत दो सूत्रों (१८-१९) में शरीर सम्बन्धी प्ररूपणा प्रज्ञापनासूत्र के २१ वें अवगाहन-संस्थानपद का अतिदेश करके की गई है। वहाँ शरीर के औदारिक आदि ५ प्रकार, उनका संस्थान (आकार), प्रमाण, पुद्गलचय, शरीरों का पारस्परिक संयोग, द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ तथा अल्पबहुत्व एवं शरीरों की अवगाहना आदि द्वारों के माध्यम से विस्तृत वर्णन किया गया है। वही समग्र वर्णन अल्पबहुत्व तक यहाँ करना चाहिए।' ॥ दशम शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥ १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९४ २. (क) प्रज्ञापनासूत्र : अवगाहन-संस्थानपद, २१, सू. १४७४-१५६६, पृ. ३२८-३४९ (महा. जै. विद्यालय) (ख) संग्रहगाथा-कई १ संठाण २ पमाणं ३, पोग्गलचिणणा ४ सरीरसंजोगो५। दव्व-पएसऽप्पबहुं ६ सरीरोगाहणाए य॥१॥ -भगवती. अ.वृत्ति, पत्र ४९५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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