SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ५७७ किया है। सिद्धान्त-निष्कर्ष—इस पाठ से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि कोई साधक चाहे जितनी ऊँची क्रिया करे, कठोर चारित्र-पालन करे, किन्तु यदि उसकी दृष्टि एवं मति मिथ्यात्वग्रस्त हो गई है, अज्ञानतिमिर से . व्याप्त है, मिथ्याभिनिवेशवश वह मिथ्यासिद्धान्त को पकड़े हुए है, सरलता और जिज्ञासापूर्वक समाधान पाने की रुचि उसमें नहीं है, तो वह देवलोक में जाने पर भी निम्नकोटि का देव बनता है और संसारपरिभ्रमण करता किल्विषिक देवों के भेद, स्थान एवं उत्पत्तिकारण १०४. कतिविहा णं भंते ! देवकिब्बिसिया पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा देवकिब्बिसिया पण्णत्ता, तं जहा—तिपलिओवमट्ठिईया, तिसागरोवमट्टिईया, तेरससागरोवमट्टिईया। [१०४ प्र.] भगवन् ! किल्विषिक देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१०४ उ.] गौतम! किल्विषिक देव तीन प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं—(१) तीन पल्योपम की स्थिति वाले, (२) तीन सागरोपम की स्थिति वाले और (३) तेरह सागरोपम की स्थिति वाले। १०५. कहि णं भंते ! तिपलिओवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? गोयमा ! उप्पिं जोइसियाणं, हिडिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्टिईया देवकिब्बिसिया परिवसंति । [१०५ प्र.] भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? [१०५ उ.] गौतम ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधर्म-ईशान कल्पों (देवलोकों) के नीचे तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं। १०६. कहि णं भंते ! तिसागरोवमट्टिईया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, हिटुिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिईया देवकिब्बिसिया परिवसंति। [१०६ प्र.] भगवन् ! तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहां रहते हैं ? [१०६ उ.] गौतम ! सौधर्म और ईशान कल्पों के ऊपर तथा सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के नीचे तीन सागरोपम की स्थिति वाले देव रहते हैं। १०७. कहि णं भंते ! तेरससागरोवमट्टिईया देवकिब्बिसिया देवा परिवसंति ? १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४८०
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy