SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 607
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दों का भावार्थ-आयाए—अपने आप, स्वयमेव। अवक्कमइ-चला गया। असब्भावुब्भावणाहिं—असद्भावों की उद्भावनाओं से-प्रकट करने से। मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं—मिथ्यात्व के अभिनिवेशों से (असत्य के दृढ़ हठाग्रह से)।वुग्गाहेमाणे-भ्रान्त (गुमराह) करता हुआ या सिद्धान्तविरुद्ध हठाग्रह युक्त करता हुआ।वुप्पाएमाणे-विरुद्ध (मिथ्या) ज्ञानयुक्त या दुर्विदग्ध करता हुआ।अणालोइयपडिक्कंते-आलोचना और प्रतिक्रमण नहीं करने से। अत्ताणं झूसेइ-अपने शरीर को झोंक दिया। तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता–अनशन से तीस बार के भोजन का छेदन करते (भोजन से सम्बन्ध काटते हुए)। किल्विषिक देवों में उत्पत्ति का भगवत्समाधान १०३. तए णं से भगवं गोयमे जमालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमाली णामं अणगारे, से णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उवन्ने ? 'गोयमा' दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी कुसिस्से जमाली नामं अणगारे से णं तदा मम एवं आइक्खमाणस्स ४ एयमलैंणो सद्दहइणो पत्तियइ णो रोएइ, एयमठं असंघहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्चं पि ममं अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं तं चेव जाव देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने। _[१०३] तदनन्तर जमालि अनगार को कालधर्म प्राप्त हुआ जान कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा- [प्र.] भगवन् ! यह निश्चित है कि जमालि अनगार आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य था। भगवन् ! वह जमालि अनगार काल के समय काल करके कहाँ गया है, कहाँ उत्पन्न हुआ है ? [उ.] हे गौतम! इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीर ने भगवान् गौतमस्वामी से इस प्रकार कहा—गौतम! मेरा अन्तेवासी जमालि नामक अनगार वास्तव में कुशिष्य था। उस समय मेरे द्वारा (सत्सिद्धान्त) कहे जाने पर यावत् प्ररूपित किये जाने पर उसने मेरे कथन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की थी। उस (पूर्वोक्त) कथन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि न करता हुआ दूसरी बार भी वह अपने आप मेरे पास से चला गया और बहुत-से असद्भावों के प्रकट करने से, इत्यादि पूर्वोक्त कारणों से यावत् वह काल के समय काल करके किल्विषिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ है। विवेचन-जमालि की गति के विषय में प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत सू. १०३ में जमालि अनगार की मृत्यु के बाद गौतमस्वामी के द्वारा उसकी उत्पत्ति और गति के विषय में पूछे जाने पर भगवान् ने उसका समाधान १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४८९ (ख) भगवती. भा. ४. (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७६२
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy