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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२३] उस दिन क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क और चत्वर यावत् महापथ पर बहुत-से लोगों का कोलाहल हो रहा था, इत्यादि सारा वर्णन जिस प्रकार औपपातिकसूत्र में है, उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए, यावत् बहुत-से लोग परस्पर एक-दूसरे से इस प्रकार कह रहे थे, यावत् बता रहे थे कि देवानुप्रियो ! आदिकर (धर्म-तीर्थ की आदि करने वाले) यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर, इस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान (चैत्य) में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं । अतः हे देवानुप्रियो ! तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम, गोत्र के श्रवण-मात्र से महान् फल होता है, इत्यादि वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् वह जनसमूह तीन प्रकार की पर्युपासना करता है।
२४. तए णं तस्स जमालिस्स खतियकुमारस्स तं महया जणसई वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झथिए जाव' समप्पज्जित्था—किं णं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहे इ वा, खंदमहे इ वा, मुगुंदमहे इ वा, नागमहे इ वा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ वा, कूवमहे इ वा, तडागमहे इ वा, नइमहे इ वा, दहमहे इ वा, पव्वयमहे इ वा, रुक्खमहे इवा, चेइयमहे इ वा, थूभमहे इ वा, जं णं एए बहवे उग्गा भोगा राइना इक्कागा णाया कोरव्वा खत्तिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता सेणावई सेणावईपुत्ता पसत्थारो २ लेच्छई २ माहणा २ इब्भा २२ जहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइओ बहाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छंति ? एवं संपहेइ, एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति, कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेत्ता एवं वयासि—किं णं देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति ? __[२४] तब बहुत-से मनुष्यों के शब्द और उनका परस्पर मिलन (सन्निपात) सुन और देख कर उस क्षत्रिगकुमार जमालि के मन में विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ—क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र का उत्सव है ?, अथवा स्कन्दोत्सव है ?, या मुकुन्द (वासुदेव) महोत्सव है ? नाग का उत्सव है, यक्ष का उत्सव है, अथवा भूतमहोत्सव है ? या किसी कूप का, सरोवर का, नदी का या द्रह का उत्सव है ?, अथवा किसी पर्वत का, वृक्ष का, चैत्य का अथवा स्तूप का उत्सव है ?, जिसके कारण ये बहुत से उग्र (उग्रकुल के क्षत्रिय), भोग (भोगकुल या भोजकुल के क्षत्रिय), राजन्य, इक्ष्वाकु (कुलीन), ज्ञातृ (कुलीन) कौरव्य क्षत्रिय, क्षत्रियपुत्र, भट (योद्धा), भटपुत्र, सेनापति, सेनापतिपुत्र, प्रशास्ता एवं प्रशास्तृपुत्र, लिच्छवी (लिच्छवीगण के क्षत्रिय), लिच्छवीपुत्र, ब्राह्मण (माहण), ब्राह्मणपुत्र एवं इभ्य (श्रेष्ठी) इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् सार्थवाह-प्रमुख, स्नान आदि करके यावत् बाहर निकल रहे हैं ?
१. 'जाव' शब्द के सूचित पाठ 'चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे।' २. दो का अंक पुत्ता शब्द का सूचक है, यथा 'सेणावई, सेणावईपुत्ता' आदि। ३ 'जाव' शब्द से सूचित पाठ—'माहणा भडा जोहा मल्लइ लेच्छाई अन्ने ये बहवे राईसर-तलवर, माडंबिय-कोथुविय
इब्भ-सेट्ठि-नेणावइ।'