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नवम शतक : उद्देशक- ३३
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विवेचन - जमालि और उसका भोगमय जीवन — प्रस्तुत दो सूत्रों में जमालि कौन था, किस नगर का था, उसके पास वैभव और भोगसुखों का अम्बार किस प्रकार का लगा हुआ था, यह वर्णन किया गया। जालि भगवान् महावीर का जामाता था, ऐसा उल्लेख तथा जमालि के माता-पिता के नाम का उल्लेख मूल या वृत्ति में कहीं भी नहीं किया गया है।
कठिन शब्दों के अर्थ – पच्चत्थिमेणं — पश्चिम दिशा में, उप्पिं पासायवरगए— ऊपर के या उन्नत (उच्च) श्रेष्ठ प्रासाद में रहता हुआ । फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं — मृदंग के मस्तक (सिर) पर अत्यन्त शीघ्रता से पीटने से स्पष्ट आवाज कर रहे थे । उवनचिज्जमाणे – नृत्य किये जा रहे I उवगिज्जमाणे – गीत गाये जा रहे थे । उवलालिज्जमाणे – प्रशंसा से फुलाया (लड़ाया जा रहा था । माणेमाणे – मनाया जाता हुआ । कालं गालेमाणे – समय बिताता हुआ । बत्तीसतिबद्धेहिं नाडएहिं— बत्तीस प्रकार के अभिनयों अथवा नाटक के पात्रों से सम्बद्ध नाटक ।
भगवान् का पदार्पण सुन कर दर्शन - वन्दनादि के लिए गमन
२३. तए णं खत्तियकुंडग्गामे नगरे सिंघाडग-तिय- चउक्क - चच्चर जावरे बहुजणसद्दे इवा जहा उवंवाइए जाव एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ — एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव', विहरइ। तं महफ्फलं खलु देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं जहा उववाइए जाव' एगाभिमुहे खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्जेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए एवं जहा उवाइए जाव' तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति ।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भा. १, पृ. ४५५
२. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४६२
३. 'जाव' पद सूचित पाठ— 'चउम्मुहमहापह - पहेसु' अ.वृ.
४. औपपातिक सूत्र गत पाठ संक्षेप में— 'जणवूहेइ वा जणबोले इ वा जणकलकले ति वा जणुम्मी इ वा जणुक्कलिया इ वा जणसन्निवाए इ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ एवं भासइ । '
'जाव' शब्द निर्दिष्ट पाठ' उग्गहं ओगिण्हति, ओगिण्हत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे । '
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६. 'जाव' शब्द सूचक पाठ— 'नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण - णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ।, एगस्स वि आयरियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ?, तं च्छा देवापिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो नम॑सामो सक्कारेमो सम्माणेमो, एयं णं पेच्चभवे हियाए सुहाए खमाए णिस्सेअसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ति कट्टु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता एवं भोगा राइन्ना खत्तिया भडा अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं पूअणवत्तियं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं कोउहलवत्तियं, अप्पेगइया जीयमेयं ति कट्टु ।!'
७. 'जाव' शब्द सूचित पाठ — 'तेणामेव उवागच्छंति, तेणामेव उवागच्छित्ता छत्ताइए तित्थयराइसए पासंति, जाण वाहणाई ठाईति ।'