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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन — देवानन्दा : प्रव्रजित और मुक्त : ऋषभदत्त ब्राह्मण की तरह देवानन्दा को भी संसार से विरक्ति हुई, उसने भी भगवान् के समक्ष अपनी दीक्षाग्रहण की इच्छा व्यक्त की। योग्य समझ कर भगवान् ने उसे दीक्षा दी। साध्वी चन्दनबाला को शिष्य के रूप में सौंपी। आर्या चन्दना ने उसे शिक्षित किया, शास्त्राध्ययन कराया। देवानन्दा ने भी विविध तप किये और अन्त में संल्लेखना -- संथारापूर्वक-समाधिपूर्वक शरीर त्याग किया और मुक्ति प्राप्त की। ५२८ इस पाठ से श्रमण-संस्कृति का संयम एवं तप द्वारा कर्मक्षय करके मुक्त होने का सिद्धान्त स्पष्ट अभिव्यक्त होता है। वैदिक-संस्कृति-निरूपित, संयम में पुरुषार्थ किए बिना ही भगवान् द्वारा स्वर्ग—मोक्ष प्रदान कर देने का सिद्धान्त खण्डित हो जाता है। (सू. १८ में) भगवान् महावीर द्वारा देवानन्दा को प्रव्रजितमुण्डित करने के उपरान्त पुन: (सू. १९ में ) आर्या चन्दना द्वारा प्रव्रजित- मुण्डित करने का उल्लेख स्पष्ट करता है कि भ. महावीर ने स्वयं प्रव्रजित- मुण्डित नहीं करके आर्या चन्दना से प्रव्रजित-मुण्डित कराया और उसे शिष्या के रूप में सौंपा। आर्या चन्दना ने भगवदाज्ञा से उसे प्रव्रजित- मुण्डित किया । मालि-चरित जमालि और उसका भोग-वैभवमय जीवन २१. तस्स णं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नामं नगरे होत्था । वण्णओ। [२१] उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर से पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था । उसका यहाँ वर्णन समझ लेना चाहिए। २२. तत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमाली नामं खत्तियकुमारे परिवसइ अड्ढे दित्ते जाव अपरिभूए उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं नाडएहिं वरतरुणीसं उत्तेहिं उवनच्चिज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे पाउस-वासारत्त-सरद - हेमंत - वसंत गिम्हपज्जंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं माणेमाणे माणेमाणे कालं गालेमाणे इट्ठे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्स कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ । [२२] उस क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह आढ्य (धनिक), दीप्त (तेजस्वी ) यावत् अपरिभूत था । वह जिसमें मृदंग वाद्य की स्पष्ट ध्वनि हो रही थी, बत्तीस प्रकार के नाटकों के अभिनय और नृत्य हो रहे थे, अनेक प्रकार की सुन्दर तरुणियों द्वारा सम्प्रयुक्त नृत्य और गुणगान (गायन) बार-बार किये जा रहे थे, उसकी प्रशंसा से भवन गुंजाया जा रहा था, खुशियां मनाई जा रही थीं, ऐसे अपने वैभव के अनुसार आनन्द (उत्सव ) मनाता हुआ, समय बिताता हुआ, मनुष्यसम्बन्धी पांच प्रकार के इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, वाले कामभोगों का अनुभव करता हुआ रहता था।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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