SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 558
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ५२७ की तपश्चर्याओं से। देवानन्दा द्वारा साध्वी-दीक्षा और मुक्ति-प्राप्ति १७. तए णं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हठ्ठतुट्ठा० समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते !, तहमेयं भंते, एवं जहा उसभदत्तो (सु. १६) तहेव जाव धम्ममाइक्खियं। [१७] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म सुन कर एवं हृदयंगम करके वह देवानन्दा ब्राह्मणी हृष्ट एवं तुष्ट (आनन्दित एवं सन्तुष्ट) हुई और श्रमण भगवान् महावीर की तीन वार आदक्षिणप्रदक्षिणा करकेयावत नमस्कार करके इस प्रकार बोली-भगवन! आपने जैसा कहा है. वैसा ही है भगवन ! आपका कथन यथार्थ है। इस प्रकार जैसे ऋषभदत्त ने (सू. १६ में) प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए निवेदन किया था, वैसे ही विरक्त देवानन्दा ने भी निवेदन किया, और धर्म कहा, यहाँ तक कहना चाहिए। १८. तए णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणिं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव अज्जचंदणाए अजाए सीसिणित्ताए दलयइ। [१८] तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयमेव प्रव्रजित कराया, स्वयमेव मुण्डित कराया और स्वयमेव आर्य चन्दना आर्या को शिष्यारूप में सौंप दिया। १९. तए णं सा अज्जचंदणा अन्जा देवाणंदं माहणिं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदणाए अजाए इमं एयारूवंधम्मियं उवदेसं सम्म संपडिवज्जइ-तमाणाए तहा गच्छइ जाव संजमेणं संजमइ। [१९] तत्पश्चात् आर्य चन्दना आर्या ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयं प्रव्रजित किया, स्वयमेव मुण्डित किया और स्वयमेव उसे (संयम की) शिक्षा दी। देवानन्दा (नवदीक्षित साध्वी) ने भी ऋषभदत्त के समान इस प्रकार के धार्मिक (श्रमणधर्मपालन सम्बन्धी) उपदेश को सम्यक् रूप से स्वीकार किया और वह उनकी (आर्या चन्दनबाला की) आज्ञानुसार चलने लगी, यावत् संयम (पालन) में सम्यक् प्रवृत्ति करने लगी। २०. तए णं सा देवाणंदा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतियं सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगा अहिज्जइ। सेसं तं चेव जाव सव्वदुक्खप्पहीणा। [२०] तदनन्तर आर्या देवानन्दा ने आर्य चन्दना आर्या से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् है, यावत् वह देवानन्दा आर्या (सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त और) समस्त दुःखों से रहित हुई। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४६० (ख) भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७०२-१७०३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy