SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम शतक : उद्देशक- ३३ ५३१ इस प्रकार विचार करके उसने कंचुकीपुरुष (सेवक) को बुलाया और उससे पूछा—' हे देवानुप्रियो ! क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र आदि का कोई उत्सव है, जिसके कारण यावत् ये सब लोग बाहर जा रहे हैं ?' २५. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ट० समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी—णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव, निग्गच्छंत्ति, एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गो जाव' अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव' निग्गच्छंति । [२५] तब जमालि क्षत्रियकुमार के इस प्रकार कहने पर वह कंचुकी पुरुष अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर का (नगर में) आगमन जान कर एवं निश्चित करके हाथ जोड़ कर जयविजय-ध्वनि से जमालि क्षत्रियकुमार को बधाई दी। तत्पश्चात् उसने इस प्रकार कहा—' -'हे देवानुप्रिय ! आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र आदि उत्सव नहीं है, जिसके कारण यावत् लोग नगर 'बाहर जा रहे हैं, किन्तु देवानुप्रिय ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं, इसी कारण ये उग्रकुल, भोगकुल आदि के क्षत्रिय आदि तथा और भी अनेक जन वन्दन के लिए यावत् जा रहे हैं । ' २६. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, कोडुंबियपुरिसे सद्दावइत्ता एवं वयासी — खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । [२६] तदनन्तर कंचुकीपुरुष से यह बात सुन कर और हृदय में धारण करके जमालि क्षत्रियकुमार हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुला कर इस प्रकार कहा— देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोत कर यहाँ उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके सूचना दो । २७. तणं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वृत्ता समाणा जाव पच्चप्पिणंति । [२७] तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के इस आदेश को सुन कर तदनुसार कार्य १. 'जाव' शब्द से सूचित पाठ — 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सिरसाकंठेमालाकड़ा ।' २. 'जाव' शब्द से सूचित पाठ 'अप्पेगइया पूअणवत्तियं एवं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं कोउहल्लवत्तियं असुयाइं सुणिस्सामो, सुयाइं निस्संकियाइ करिस्सामो, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया हयगया एवं ग-रह- सिबिया - संदमाणियागया, अप्पेगइया पायविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महता उक्किट्ठसीहणाय बोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा खत्तियकुंडग्गामस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं ।'
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy