________________
नवम शतक : उद्देशक-३३
५२३
जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ।
[११] इसके पश्चात् वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हो अपने परिवार से परिवृत्त होकर ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ निकला और बहुशालक नामक उद्यान में आया। वहाँ तीर्थंकर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देखा। देखते ही उसने श्रेष्ठ धार्मिक रथ को ठहराया और उस श्रेष्ठ-धर्म-रथ से नीचे उतरा।।
रथ से उतर कर वह श्रमण भगवान् के पास पांच प्रकार का अभिगमपूर्वक गया। वे पांच अभिगम इस प्रकार हैं। (१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि, द्वितीय शतक ( के पंचम उद्देशक सू. १४) में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना करने लगा।
१२. तए णं सा देवाणंदा माहणी धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता. बहुयाहिं खुजाहिं जाव' महत्तरगवंदपरिक्खित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए १ अचित्ताणं दव्वाणं अविमोयणयाए २ विणयोणयाए गायलट्ठीए ३ चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं ४ मणस्स एगत्तीभावकरणेणं ५। जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उसभदत्तं माहणं पुरओ कटु ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पन्जुवासइ।।
[१२] तदनन्तर वह देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत-सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका-वृन्द से परिवृत्त होकर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक गमन किया। वे पांच अभिगम इस प्रकार हैं—(१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना, (२) अचित्त द्रव्यों का त्याग न करता, अर्थात् वस्त्र आदि को व्यवस्थित ढंग से धारण करना, (३) विनय से शरीर को अवनत करना (नीचे झुकाना), (४) भगवान् के दृष्टिगोचर होते ही दोनों हाथ जोड़ना, (५) मन को एकाग्र करना। इन पांच अभिग्रहों द्वारा जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आई और उसने भगवान् को तीन वार आदक्षिण (दाहिनी ओर से) प्रदक्षिणा की, फिर चन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार के बाद ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे करके अपने परिवार सहित शुश्रूषा करती हुई, सम्मुख खड़ी रह कर विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर उपासना करने लगी।
विवेचन—पांच अभिगम क्या और क्यों ?- त्यागी महापुरुषों के पास जाने की एक विशिष्ट मर्यादा को शास्त्रीय परिभाषा में अभिगम कहते हैं। वे पांच प्रकार के हैं परन्तु स्त्री और पुरुष के लिए तीसरे अभिगम में अनन्तर है। श्रावक के लिए है—एक पट वाले दुपट्टे का उत्तरासंग करना, जबकि श्राविका के लिए है—विनय से शरीर को झुकाना। साधु-साध्वियों के पास जाने के लिए इन पांच अभिगमों का पालन
१. 'जाव' पद से यह पाठ-चेडियाचक्कवालवरिसधर-थेरकंचइज्ज-महत्तरयवंदपरिक्खित्ता।