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________________ ५२२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। ___ [१०] तब देवानन्दा ब्राह्मणी ने भी (अंतःपुर में) स्नान किया, यावत् अल्पभार वाले महामूल्य वाले आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। फिर बहुत सी कुब्जा दासियों तथा चिलात देश की दासियों के साथ यावत् अन्तःपुर से निकली। अन्तःपुर से निकल कर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ खड़ा था, वहाँ आई। उस श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हुई। विवेचन-भगवान् के दर्शन-वन्दनादि के लिए जाने की तैयारी-प्रस्तुत सूत्र ७ से १० तक चार सूत्रों में क्रमशः कौटुम्बिक पुरुषों को श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार करके शीघ्र उपस्थित करने की आज्ञा दी, उन्होंने आज्ञा शिरोधार्य की और शीघ्र धार्मिक रथ तैयार करके प्रस्तुत किया। तदनन्तर ऋषभदत्त ब्राह्मण तथा देवानन्दा ब्राह्मणी पृथक्-पृथक् स्नानादि से निवृत्त होकर वेशभूषा से सुसज्जित हुए और धार्मिक रथ में बैठे। कठिन शब्दों के अर्थ-कोडुंबियपुरिसा—कौटुम्बिक पुरुष (सेवक या कर्मचारी)। सद्दावेइबुलाए। खिप्पामेव-शीघ्र ही। लहुकरणजुत्ता-शीघ्र गति करने वाले उपकरणों— साधनों से युक्त। समखुर-वालिधाण-समानखुर और पूंछ वाले। समलिहियसिंगे-समान चित्रित सींगोंवाले। जंबूणयमयकलावजुत्त—जाम्बुनद-स्वर्ण से बने हुए कलापों कण्ठ के आभूषणों से युक्त। परिविसिडेहिंप्रतिविशिष्ट— प्रधानरूप से फुर्तीले।रययामयघंट-चांदी की घंटियों से युक्त। सुत्तरज्जयवरकंचणनत्यपग्ग -होग्गहियएहिं—सोने के डोरी (सूत्र) की नाथ (नासारज्जु) से बंधे हुए।णीलुप्पलकयामेलएहिं—नील कमल की कलंगी से युक्त। पवरगोणजुवाणएहिं—जवान श्रेष्ठ बैलों से।सुजायजुगजोत्तरज्जुयजुगपसत्थसुविरचितनिम्मियं-उत्तम काष्ठ के जुए और जोत की रस्सियों से सुनियोजित । पवरलक्खणोववेयंउत्कृष्ट लक्षणों से युक्त। जुत्तामेव—जोत कर । उवट्ठवेह-उपस्थित करो। एयमाणत्तियं—इस आज्ञा को। पच्चप्पिणह–प्रत्यर्पण करो- वापिस लौटाओ। तहत्ति—तथास्तु-ऐसा ही होगा। खुन्जाहिकुज्जा दासियों के साथ। चिलाइयाहिं—चिलात (किरात) देश में उत्पन्न दासियों के साथ। ११. तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणदाए माहणीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे समाणे णियगपरियालसंपरिवुडे माहणकुंडग्गामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थकरातिसए पासइ, २ धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, २ समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए एवं जहा विइयसए (स. २ उ.५ सु. १४) १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४५२ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५९ (ख) भगवती. तृतीय खण्ड (गुजरात विद्यापीठ), पृ. १६३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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