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________________ ५२४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र करना आवश्यक है। देवानन्दा की मातृवत्सलता और गौतम का समाधान १३. तए णंसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया पप्फुयलोयणासंवरियवलयबाहाकंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगं पिव समूससियरोमकूवा समणं भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी चिट्ठइ। [१३] तदनन्तर उस देवानन्दा ब्राह्मणी के पाना चढ़ा (अर्थात् —उसके स्तनों से दूध आ गया)। उसके नेत्र हर्षाश्रुओं से भीग गए। हर्ष से प्रफुल्लित होती हुई उसकी बाहों को वलयों ने रोक लिया। (अर्थात् उसकी भुजाओ के कड़े-बाजुबंद तंग हो गए) । हर्षातिरेक से उसकी कञ्चुकी (कांचली) विस्तीर्ण हो गई। मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान उसका शरीर रोमाञ्चित हो गया। फिर वह श्रमण भगवान् महावीर को अनिमेष दृष्टि से (टकटकी लगाकर) देखती रही। १४. 'भंते!' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी—किं णं भंते ! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया तं चेव जाव रोमकूवा देवाणुप्पियं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी चिट्ठइ ? . 'गोयमा !' दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए। तेणं एसा देवाणंदा माहणी तेणं पुव्वपुत्तसिणेहाणुरागेणं आगयपण्हया जाव समूससियरोमकूवा ममं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी' चिट्ठइ। __ [१४ प्र.] (यह देखकर) भगवान् गौतम ने, 'भगवन्!' यों कह कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार किया। उसके पश्चात् इस प्रकार [प्रश्न] पूछा-भन्ते ! इस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनों से दूध कैसे निकल आया? यावत् इसे रोमांच क्यों हो आया? और यह आप देवानुप्रिय को अनिमेष दृष्टि से देखती हुई क्यों खड़ी है ? [१४ उ.] 'गौतम!' यों कह कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा—हे गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है । मैं देवानन्दा का आत्मज (पुत्र) हूँ। इसलिए देवानन्दा को पूर्व-पुत्रस्नेहानुरागवश दूध आ गया, यावत् रोमाञ्च हुआ और यह मुझे अनिमेष दृष्टि से देख रही है। _ विवेचन–देवानन्दा माता और पुत्रस्नेह-भगवान् महावीर को देखते ही देवानन्दा के स्तनों से दुग्धधारा फूट निकली, रोमांच हो गया। हर्ष से नेत्र प्रफुल्लित हो गए और वह भगवान् महावीर की ओर १. भगवती भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७०० २. 'देहमाणी' के बदले 'पेहमाणी' पाठ अन्तकृत् आदि शास्त्रों में अधिक प्रचलित है। अर्थ दोनों का समान है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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