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तेत्तीसइमो उद्देसा : कुंडग्गामे तेतीसवाँ उद्देशक : कुण्डग्राम
ऋषभदत्त और देवानन्दा संक्षिप्त परिचय
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था। वण्णओ। बहुसालए चेतिए। वण्णओ।
[१] उस काल और उस समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था। उसका वर्णन.(औपपातिक सूत्रगत) नगर वर्णन के समान समझ लेना चाहिए। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य (उद्यान) था। उसका वर्णन भी (औपपातिकसूत्र से) करना चाहिए।
२. तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसति—अड्ढे दित्ते वित्ते जाव' अपरिभूए। रिउवेद-जजुवेद—सामवेद- अथव्वणवेद जहा खंदओ (स. २ उ. १ सु. १२) जाव अनेसु य बहुसु बंभण्णएसु नएसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्ण-पावे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
[२] उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह आढ्य (धनवान्), दीप्त (तेजस्वी), प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में निपुण था। (शतक २, उद्देशक १, सू. १२ में कथित) स्कन्दक तापस की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से नयों (शास्त्रों) में निष्णात था। वह श्रमणों का उपासक, जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता, पुण्य-पाप के तत्त्व को उपलब्ध (हृदयंगम किया हुआ), यावत् आत्मा को भावित करता हुआ विहरण (जीवन-यापन) करता था।
३. तस्स णं उसभदत्तमाहणस्स देवाणंदा नामं माहणी होत्था, सुकुमालपाणि-पाया जाव पियदंसणा सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपण्ण-पावा जाव विहरड।
[३] उस ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी (धर्मपत्नी) थी। उसके हाथ-पैर सुकुमाल . थे, यावत् उसका दर्शन भी प्रिय था। उसका रूप सुन्दर था। वह श्रमणोपासिका थी, जीव-अजीव आदि तत्त्वों की जानकार थी तथा पुण्य-पाप के रहस्य को उपलब्ध की हुई थी, यावत् विहरण करती थी।
विवेचन—ब्राह्मणकुण्ड—यह 'क्षत्रियकुण्ड' के पास ही कोई कस्बा था। ब्राह्मणों की बस्ती अधिक होने से इसका नाम ब्राह्मणकुण्ड पड़ गया।
१. जाव पद से सूचित पाठ—'विच्छिन्नविउलभवण-सयणासण जाव वाहणाइन्ने' इत्यादि। २. भगवतीसूत्र तृतीय खण्ड (गुजरात विद्यापीठ), पृ. १६२