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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२ ५१७ [५९] इसके पश्चात् गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन नमस्कार किया। उसके बाद इस प्रकार निवेदन किया __ भगवन्! मैं आपके पास चातुर्यामरूप धर्म के बदले पंचमहाव्रतरूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूँ। इस प्रकार सारा वर्णन प्रथम शथक के नौवें उद्देशक में कथित कालास्यवेषिकपुत्र अनगार के समान जानना चाहिए, यावत् (गांगेय अनगार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त) सर्वदुःखों से रहित बने। हे भगवन् यह इसी प्रकार है ! हे भगवन्! यह इसी प्रकार है। विवेचन भगवान् के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहाव्रत धर्म का स्वीकार- प्रस्तुत दो सूत्रों (५८-५९) में यह प्रतिपादन किया गया है कि जब गांगेय अनगार को भगवान् के सर्वज्ञत्व एवं सर्वदर्शित्व पर विश्वास हो गया, तब उन्होंने भगवान् से चातुर्यामधर्म के स्थान पर पंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार किया और क्रमशः सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। ॥नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक समाप्त॥
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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