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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२ ४८९ इन १५ विकल्पों को पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी ३५ विकल्पों के साथ गुणा करने से कुल ५२५ भंग होते हैं। चतुःसंयोगी ७०० भंग-चतुःसंयोगी २० विकल्प होते हैं । यथा-१-१-१-४, १-१-४-१, १४-१-१, ४-१-१-१, १-१-२-३, १-१-३-२, १-३-१-२, ३-१-१-२, १-२-१-३, २-१-१-३, ३-२-१-१, २-३-१-१, २-२-२-१, २-१-२-२, १-२-२-२, २-२-१-२, १-२-३-१, १-३२-१, २-१-३-१ और ३-१-२-१। इन २० विकल्पों को पूर्वोक्त ३५ भंगों के साथ गुणा करने पर चतुःसंयोगी कुल ७०० भंग होते हैं। पंचसंयोगी ३१५ भंग-इसके १५ विकल्प होते हैं। यथा-१-१-१-१-३,१-१-१-३-१ इत्यादि। इन १५ विकल्पों को रत्नप्रभादि के संयोग से जनित २१ भंगों के साथ गुणा करने पर पंचसंयोगी भंगों की कुल संख्या ३१५ होती है। षट्संयोगी ४२ भंग—षसंयोगी विकल्प ६ होते हैं। यथा—१-१-१-१-१-२, १-१-१-१-२१, १-१-१-२-१-१,१-१-२-१-१-१, १-२-१-१-१-१,२-१-१-१-१-१। इन ६ विकल्पों के साथ रत्नप्रभादि के संयोग से जनित ७ भंगों का गुणाकार करने पर षटसंयोगी भंगों की कुल संख्या ४२ होती है। सप्तसंयोगी एक भंग-१-१-१-१-१-१-१ इस प्रकार सप्तसंयोगी एक ही भंग होता है। इस प्रकार सात नैरयिकों के नरकप्रवेशनक में एक संयोगी ७, द्विकसंयोगी १२६, त्रिकसंयोगी ५२५, चतुष्कसंयोगी ७००, पंचसंयोगी ३१५, षट्संयोगी ४२ और सप्तसंयोगी १, यों कुल मिलाकर १७१६ भंग होते आठ नैरयिकों के प्रवेशनकभंग २३. अट्ठ भंते ! नेरतिया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। अहवा १७ एगे रयण सत्त सक्करप्पभाए होज्जा १।एवं दुयासंजोगो जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्ठण्ह वि भाणियव्वो, नवरं एक्केको अब्भहिओ संचारेयव्वो। सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगस्स ३+१+१+१+१+१ तिणि सक्कर० एगे वालुय० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण जाव एगे तमाए दो अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण० जाव दो तमाए एगे अहेसत्तमाए, एवं संचारेयव्वं जाव अहवा दो रयण० एगे सक्कर० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३००३। [२३ प्र.] भगवन् ! आठ नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा. १ (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ४३४-४३५ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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