________________
४७८
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र हुए। बालुकाप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने से ४ भंग होते हैं, जो मूल पाठ में बतला दिये हैं। उन्हें पूर्वोक्त तीन विकल्पों से गुणा करने पर कुल ४+४+४ = १२ भंग होते हैं। इसी प्रकार पंकप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने पर तथा तीन विकल्पों से गुणा करने पर कुल ९ भंग होते हैं। इसी प्रकार धूमप्रभा के साथ ६ भंग तथा तमःप्रभा के साथ ३ भंग होते हैं। यों उत्तरोत्तर आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने से ऊपर बताए अनुसार रत्नप्रभा के १८ शर्कराप्रभा के १५, बालुकाप्रभा के १२, पंकप्रभा के ९, धूमप्रभा के ६ और तम:प्रभा के ३, ये कुल मिलाकर चार नैरयिकों के द्विकसंयोगी ६३ भंग होते हैं।
चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग १०५ होते हैं। यथा चार नैरयिकों के १-१-२, १-२-१ और २-१-१ ये तीन भंग एक विकल्प के होते हैं, इनको रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा के साथ बालुकाप्रभा आदि आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने पर५ विकल्प होते हैं। पूर्वोक्त तीन भंगों के साथ गुणा करने पर १५ भंग होते हैं। इसी प्रकार इन तीन भंगों द्वारा रत्नप्रभा और बालुकाप्रभा का आगे की पृथ्वियों के साथ संयोग करने से कुल १२ भंग होते हैं। रत्नप्रभा और पंकप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर कुल ९ भंग होते हैं। रत्नप्रभा और धूमप्रभा का संयोग करने पर ६ भंग, तथा रत्नप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग करने पर तीन भंग होते हैं। इस प्रकार रत्नप्रभा के संयोग वाले कुल भंग १५+१२+९+६+३ = ४५ होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के साथ संयोग करने पर १२, शर्कराप्रभा और पंकप्रभा के साथ संयोग करने पर ९, शर्कराप्रभा और धूमप्रभा के साथ संयोग करने पर ६, तथा शर्कराप्रभा और तमःप्रभा का संयोग करने पर ३ भंग होते हैं। इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले कुल भंग १२+९+६+३ = ३० होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा बालुकाप्रभा और पंकप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर ९, बालुकाप्रभा और धूमप्रभा के साथ ६ तथा बालुकाप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग करने से ३ भंग होते हैं। इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ संयोग वाले कुल भंग ९+६+३ = १८ होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा पंकप्रभा और धूमप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने पर ९, पंकप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग वाले ३ भंग होते हैं। यों पंकप्रभा के संयोग वाले कुल भंग ९+३+ = १२ होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा पंकप्रभा
और तमःप्रभा के साथ संयोग करने पर तीन भंग होते हैं। पूर्वोक्त तीन विकल्पों द्वारा धूमप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग वाले ३ भंग होते हैं। इस प्रकार त्रिकसंयोगी समस्त भंग ४५+३०+१८+९+३ = १०५ होते हैं।
उपर्युक्त पद्धति से चार नैरयिकों के चतुःसंयोगी ३५ भंग होते हैं, जिनका उल्लेख मूलपाठ में कर दिया है। __यों चार नैरयिकों की अपेक्षा से असंयोगी७, द्विकसंयोगी ६३, त्रिकसंयोगी १०५ और चतुःसंयोगी ३५, यों कुल २१० भंग होते हैं। पंच नैरयिकों के प्रवेशनकभंग
२०. पंच भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा ? पुच्छा।
१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) बा-१, पृ. ४२४ से ४२६ तक
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४२