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नवम शतक : उद्देशक-३२
४७७ (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (ये दो भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एकतम:प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (यह एक भंग) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (यह एक भंग हुआ। इस प्रकार रत्नप्रभा के संयोग वाले ४+३+२+१, +३+२+१, +२+१+१ = २० भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। जिस प्रकार रत्नप्रभा का उससे आगे की पृथ्वियों के साथ संचार (योग) किया उसी प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्वियों के साथ योग करना चाहिए यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस प्रकार शर्कराप्रभा के संयोग वाले १० भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (२) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (३) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस तरह बालुकाप्रभा के संयोग वाले ४ भंग हुए।)
(१) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है अथवा एक पंकप्रभा में एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है। इस प्रकार सब मिलकर चतुःसंयोगी भंग २०+१०+४+१ =३५ होते हैं। तथा चार नैरयिक, आश्रयी असंयोगी ७, द्विकसंयोगी ६३, त्रिकसंयोगी १०५ और चतुःसंयोगी ३५, ये सब २१० भंग होते हैं।)
विवेचन–चार नैरयिकों के प्रवेशनक भंग-चार नैरयिकों के १-३, २-२, ३-१ इस प्रकार के द्विकसंयोगी भंग तीन होते हैं। उनमें से रत्नप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने से १-३ के ६,२-२ के ६ और ३-१ के ६ यो १८ भंग हुए। इसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्पों के ५+५+५ = १५ भंग, इसी प्रकार बालुकाप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्पों के ४+४+४ = १२, भंग होते हैं। तथा पंकप्रभा के साथ पूर्वोक्त तीनों विकल्प भी ३+३+३ = ९ भंग,एक धूमप्रभा के साथ २+२+२ =६ भंग तथा तमःप्रभा के साथ १+१+१ = ३ भंग होते हैं। सभी मिलकर विकसंयोगी ६३ भंग बताए गए। उनमें से रत्नप्रभा के साथ संयोग वाले १८ भंग ऊपर बता दिये गए हैं। इसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का योग करने से १-३ के ५ भंग होते हैं । यथा—एक शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा आदि में होते हैं। इसी तरह २२ के भी पांच भंग होते हैं—दो शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा आदि में होते हैं। यों शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले ५ भंग हुए। इसी प्रकार ३-१ के भी शर्कराप्रभा के संयोग वाले ५ भंग होते हैं। यथा तीन शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा आदि में होता है। इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले कुल १५ भंग