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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन — एक नैरयिक के असंयोगी सात प्रवेशनक भंग - यदि एक नारक रत्नप्रभा आदि नरकों में उत्पन्न (प्रविष्ट) हो तो उसके सात विकल्प होते हैं। जैसे कि- (१) या तो वह रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है, (२) या शर्कराप्रभापृथ्वी में, (३ से ७) या इसी तरह आगे एक-एक पृथ्वी में यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। इस प्रकार असंयोगी सात भंग होते हैं । उत्कृष्ट प्रवेशनक के सिवाय सभी भूमियों में असंयोगी सात ही विकल्प होते हैं। दो नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग १७. दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा ? ४६८ • गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा । ७ । अहवा एगे रयणप्पभाए होज्जा, एगे सक्करप्पभाए होज्जा १ | अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा २ । जाव एगे रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, ३-४-५-६ । अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा ७ । जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे असत्तमाए होज्जा ८-९-१०-११। अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा १२ । एवं जाव अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, १३ - १४-१५ । एवं एक्केक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव अहवा एगे तमाए, एगे असत्तमाए होज्जा, १६-१७-१८-१९-२०-२१ । [१७ प्र.] भगवन्! दो नैरयिक जीव, नैरयिक- प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? [१७ उ.] गांगेय! वे दोनों (१) रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते हैं अथवा (२-७) यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । अथवा (१) एक रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक शर्कराप्रभापृथ्वी में । अथवा (२) एक रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक बालुकाप्रभापृथ्वी में ( ३-४-५-६) । अथवा यावत् एक रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक अध:सप्तमपृथ्वी में । (अर्थात् — एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक पंकप्रभापृथ्वी में, एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक धूमप्रभापृथ्वी में, एक रत्नप्रभापृथ्वी में और एक तम: प्रभापृथ्वी में, या एक रत्नप्रभा पृथ्वी में और एक तमस्तम: प्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है। इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ छह विकल्प होते हैं। (७) अथवा एक शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक बालुकाप्रभा में, अथवा (८-९-१० १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४२२ (ख) भगवती (पं. घेवरचन्दजी) भा. ४, पृ. १६१९
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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